खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी.
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
3
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई
माझी को ढूँ, क्या उतराई?
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Amazing poetry. just loved it!!!
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