खा- खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा सम भावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
क) खा-खाकर कुछ क्यों नहीं प्राप्त होता?
ख) भोगी बनने और वैरागी बनने से क्या संभावना है ?
ग) कवयित्री ने क्या सुझाव दिया और क्यों?
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यहाँ रस्सी से कवयित्री का तात्पर्य स्वयं के इस नाशवान शरीर से है। उनके अनुसार यह शरीर सदा साथ नहीं रहता। यह कच्चे धागे की भाँति है जो कभी भी साथ छोड़ देता है और इसी कच्चे धागे से वह जीवन नैया पार करने की कोशिश कर रही है।
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kavitri in panktiyon ke Madhyam se Kahana chahti hai ki yadi manushya Apne Jivan mein sirf upbhok karne ki lalsa rakhega aur Kut V Kuchh Hasil nahin kar sakta to use Swayam per ghamand a Jaega aur FIR vah ahankari Ban Jaega Ahankar Patan ka Marg hota hai kavitri apni Baton ko pramukhta se kahati hai ki manushya ko Apne Jivan Mein Swayam Banane chahie
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