(ख) खरभरू देखि बिकल पुर नारीं । सब मिलि देहिं महीपन्ह गारी ।।
तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा ।।
देखि महीप सकल सकुचाने । बाज झपट जनु लवा लुकाने ।।
गौरि सरीर भूति भल भ्राजा । भाल बिसाल त्रिपुंड बिराजा ।।
सीस जटा ससिबदनु सुहावा । रिसबस कछुक अरुन होइ आवा ।।
भृकुटी कुटिल नयन रिस राते । सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते ।।
बृषभ कंध उर बाहु बिसाला । चारू जनेउ माल मृगछाला ।।
कटि मुनिबसन तून दुइ बाँधे । धनु सर कर कुठारू कल काँधे ।।
दो. - सांत बेषु करनी कठिन बरनि न जाइ सरूप ।
धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप ।।
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