खीलाफत आन्दोलन या हुआ?
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ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था। इस आन्दोलन का उद्देश्य (सुन्नी) इस्लाम के मुखिया माने जाने वाले तुर्की के ख़लीफ़ा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिये अंग्रेज़ों पर दबाव बनाना था। सन् १९२४ में मुस्तफ़ा कमाल के ख़लीफ़ा पद को समाप्त किये जाने के बाद यह अपने-आप समाप्त हो गया। लेकिन इसकी वजह से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आजकल की भारतीय राजनीति में एक बहस का मुद्दा छिड़ गया। इसके मुख्य प्रणेता उत्तर प्रदेश के अली बंधुओं को पाकिस्तान में बहुत आदर से देखा जाता है
सन् 1908 ई. में तुर्की में युवा तुर्क दल द्वारा शक्तिहीन ख़लीफ़ा के प्रभुत्व का उन्मूलन ख़लीफ़त (ख़लीफ़ा के पद) की समाप्ति का प्रथम चरण था। इसका भारतीय मुसलमान जनता पर नगण्य प्रभाव पड़ा। किंतु, 1912 में तुर्की-इतालवी तथा बाल्कन युद्धों में, तुर्की के विपक्ष में, ब्रिटेन के योगदान को इस्लामी संस्कृति तथा सर्व इस्लामवाद पर प्रहार समझकर भारतीय मुसलमान ब्रिटेन के प्रति उत्तेजित हो उठे। यह विरोध भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध रोषरूप में परिवर्तित हो गया। इस उत्तेजना को अबुलकलाम आज़ाद, ज़फ़र अली ख़ाँ तथा मोहम्मद अली ने अपने समाचारपत्रों अल-हिलाल, जमींदार तथा कामरेड और हमदर्द द्वारा बड़ा व्यापक रूप दिया।
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ख़िलाफ़त आन्दोलन (1919-1922) भारत में मुख्य तौर पर मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आन्दोलन था। इस आन्दोलन का उद्देश्य (सुन्नी) इस्लाम के मुखिया माने जाने वाले तुर्की के ख़लीफ़ा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिये अंग्रेज़ों पर दबाव बनाना था। सन् १९२४ में मुस्तफ़ा कमाल के ख़लीफ़ा पद को समाप्त किये जाने के बाद यह अपने-आप समाप्त हो गया। लेकिन इसकी वजह से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और आजकल की भारतीय राजनीति में एक बहस का मुद्दा छिड़ गया। इसके मुख्य प्रणेता उत्तर प्रदेश के अली बंधुओं को पाकिस्तान में बहुत आदर से देखा जाता है।