ख. लोकतांत्रिक चुनावो के लिए जरूरी न्यूनतम सरते क्या है 3
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निश्चित तौर पर लोकतंत्रीय प्रणाली शासन की उत्ताम विधा है लेकिन उसकी कुछ शर्ते भी है / जैसे लोक सुशिक्षित हो , बहुत सम्मृद्ध भले न हो लेकिन कम से कम उसकी न्यूनतम अवश्यकता पूरी होती हो , सोच राष्ट्रीय हो , राष्ट्रीय उत्थान हेतु त्याग की उत्कट भावना हो , अहं बिहीन स्वतंत्र सोच हो और देश हित हमेशा स्वहित से बढ़कर हो / यह तो लोक के लिये है , जनप्रतिनिधिओ के लिये भी कुछ शर्ते है / जैसे संविधान मे कोई ऐसा प्राविधान न हो जिससे जन जन के मन मे बिलगाव पैदा हो , सबके लिये अवसर और कानून समान हो , मदद जरूर किया जाय लेकिन उसी की जिसको इसकी जरूरत हो चाहे वह किसी जाती सम्प्रदाय का हो / राष्ट्र उन्नति हेतु कड़ा से कड़ा कदम उठाने मे न हिचका जाय / जहा ऐसा लोक और लोक प्रतिनिधि न हो वहा लोकतंत्र एक ढकोसला के शिवा कुछ नही है / लोकतंत्र तो चीन मे भी है कम्युनिस्ति लोकतंत्र , इस्लामी देशो मे भी है इस्लामी लोकतंत्र और यहा बिशुद्ध रूप से जातीय लोकतंत्र ! आखिर हम कबतक सच्चाई से मूह चुराते रहेगे किसी न किसी को मोहन भगवत या मनमोहन बैद्य तो बनना ही पड़ेगा /
अब जरा गौर कीजिये आज भारत मे जो लोकतंत्र का स्वरूप है , लोकतांत्रिक उद्दंडता है उससे हम किस क्षेत्र मे चीन का मुकाबला कर पायेगे / शब्दो का आडंबर रच के हम अपने लोकतंत्र का कितना ही महिमामंडन कर ले लेकिन इस लोकतंत्र के जरिये जनसंख्या पर नियंत्रण कर पायेगे / अयोग्य नीति निर्धारको जो एक संवैधानिक मजबूरी के तहत उच्च पडो पर आसीन हो जाते है के सहारे देश का विकाशादर बढ़ा पायेगे , या आतंकवादियो के हिमायती राजनेताओ के सहारे देश से आतंकवादियो को समूल नष्ट कर पायेगे ? कैसी बिडम्बना है की हम सक्षम होते हुए भी यह सब नही कर पायेगे क्योकि यहा आतंकवाद को मजहब से और आरक्षण को जाती से जोड़ने वालो की कमी नही है / इस दुश्चक्र को तोड़ना आसान नही है क्योकि इस बिशामता पूर्ण ब्यावस्था मे अपने अपने कुटिलता के अनुसार सबका कुछ न कुछ हिस्सा है / कोई अच्छूता नही है / सत्ता के मामले मे हमारे तब के कर्णधार चाणक्य से भी बुद्धिमान थे / अंत मे बस इतना ही की ….
गैर मुमकिन है की
हालात की गुत्थी सुलझे
अहले दानिश ने बहुत
सोच के उलझाया है
HOPE THIS WILL HELP YOU!!!