खेलों में बढ़ती राजनीति के ऊपर भाषण
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वर्षों पूर्व जब मनोरंजन और शारीरिक सौष्ठव को बनाये रखने के लिए खेलों को ईजाद किया गया तब मनोरंजन के लिए सामाजिक एकत्रितकरण ही एक जरिया होता था जिनमें छोटे-छोटे खेलों का विकास हुआ लेकिन वर्तमान में खेल हों या राजनीति का खेल दोनों ने ही जनता के विष्वास को छला है एक ओर खेल प्रेमी स्पाॅट फिक्सिंग और फटाफट खेल के चक्कर में अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं वहीं आये दिन उजागर होते घोटालों की बढ़ती फेहरिस्त से आमजन बेहाल है। खेलों में भी राजनीति इस कदर घर कर गई है कि अब वहां भी कुछ ढंग का नहीं गया है, खिलाडि़यों से लेकर टीम प्रबंधन और तो और उच्चाधिकारियों के तार जुड़े होने से खेल प्रेम को बहुत धक्का लगा है। इस पर और शर्मनाक बात क्या होगी कि कई लोग खेलों में भ्रष्टाचार को वाजिब करार दिये जाने के पक्ष में आगे आ रहे हैं, क्या ऐसे में कुछ दिनों में वही लोग राजनीति में भी भ्रष्टाचार को लागू नही कर देंगे।
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