१...खाला ने पंचायत की धमकी क्यों दी?
२..अलगू चौधरी ने 5 बनकर किसके पक्ष में फैसला सुनाया? ३: सरपंच बनने पर जुम्मन ने क्या सोचा?
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जम्मन और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी । साझे में खेती होती थी । कुछ लेन - देन भी साझा था । दोनो को एक-दूसरे पर अटल विश्वास था । जम्मन जब हज करने गये थे तब अपना घर अलगू को सौंप गये और अलगू जब कभी बाहर जाते तो जुम्मन के भरोसे अपना घर छोड़ देते थे । इस मित्रता का जन्म उसी समस्य हुआ था, जब जुम्मन के पिता जुमराती उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे । जुम्मन शेख़ की एक खाला थीं । उनके पास थोड़ी सी जायदाद थी परंतु उनके निकट संबंधियो में कोई नही था । जुम्मन ने खाला से लम्बे चौड़े वादे करके खाला से जायदाद अपने नाम लिखवा ली थी । जब तक दानपत्र की रजिस्ट्री नही हुई, तब तक खाला की खूब ख़ातिरदारी हुई । स्वादिष्ट पदार्थ खिलाए गये । रजिस्ट्री की मुहर लगते ही इस ख़ातिरदारी पर भी मुहर लग गयी । जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियाँ देने के साथ कड़वी बातें भी सुनाने लगी । जुम्मन शेख़ भी निठुर हो गए । कुछ दिन खाला ने सब सुना और सहा, पर जब सहा न गया तब जुम्मन से शिकायत की । जुम्मन ने गृह स्वामिनी के प्रबंध में दख़ल देना उचित न समझा । कुछ दिन तक यों ही रो-धोकर काम चलता रहा । अंत में एक दिन खाला ने कहा - बेटा तुम्हारे साथ मेरा निबाह ना होगा । तुम महे रुपए दे दिया करो, मैं अलग खा पका लूँगी ।
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