खिलौने वाले का स्वर किस तरह से पहुंचता था
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- बांधवगढ़ बाघ अभयारण्य के फील्ड निदेशक मृदुल पाठक बताते हैं कि इन शावकों की मां एक महीने पहले मर गई. वह कहते हैं, "हमने पहले उन्हें बकरी का दूध पिलाने की कोशिश की, लेकिन इसमें इंसानी दखल उन्हें पसंद नहीं आया. उन्होंने हमारे स्टाफ के हाथों से बोतल के जरिए दूध पीने से इनकार ही कर दिया था. अब हम उन्हें दूध पिलाने के लिए सिंथेटिक निपलों का प्रयोग कर रहे हैं जो एक खिलौने में लगाए गए हैं. पहली बार इस खिलौने से दूध पीने के बाद से ही शावकों की उर्जा देखने वाली है." यानी इन शावकों ने इस खिलौने को ही अपनी मां समझ लिया है.
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