खेलन में को काको गुसैयाँ।
हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस ही कत करत रिसैयाँ।
जाति-पाँति हम तें बड़ नाही, नाहीं बसत तुम्हारी हैंया।
अति अधिकार जनावत यातें, अधिक तिहार हैं कछु गैयाँ।
रुहठि करै तासौ को खेले, रहै बैठि जहँ-तह सब ग्वैयाँ।
'सूरदास' प्रभु खेल्यौड़ चाहत, दाऊँ दियो करि नंद दुहैयाँ।।
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