“खुलशयााँ बाोंटने से बढ़ती है और दुख बाोंटने से कम होता है 50 शब्दो में लिखिए
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जीवन एक यात्राा है…आप सब छोड़ सकते हैं, पर अपनी पहचान और अपनी बुद्धि को नहीं छोड़ सकते हैं। यह भी सत्य है कि यह आपकी बाहर की यात्राा है। आप सब छोड़ सकते हैं, पर अपनी पहचान और अपनी बुद्धि को नहीं छोड़ सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यह आपकी अपनी दुनिया है। यह भी सत्य है कि यह आपकी बाहर की यात्राा है। आप किनारे की ओर जा रहे हैं। उस किनारे पहुंचकर-आप लौटना चाहें भी तो नहीं लौट सकेंगे। वह शरीर का किनारा है।
वहां से आप शिशु बनना चाहो, तो नहीं बन सकते। यह आपकी आंतरिक नहीं,बल्कि बाह्य यात्राा है, जो भोग की यात्राा है। यह आपकी अधोगामी यात्राा है। आप अपने केंद्र से अधोगामी हो गए हैं। आपकी जाग्रति तो हुई है, पर आप जागकर अपनी सीमा की ओर नहीं जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि आप दो दिशाओं में विभाजित हो चुके हैं। उन दो दिशाओं के दो लक्ष्य हैं। एक अंतर्मन की ओर की दिशा, जो आपका आत्म-जागरण है। स्वयं की अंतर्यात्र है। यह अधोगमन की यात्राा है। आपके अंतर्मन में जो दूसरी यात्राा है, जो दूसरी दिशा का छोर है। वह बुद्धि है। बुद्धि छोर नहीं है। यह आपका किनारा नहीं। बुद्धि के तल पर बुद्धि के बाद ही आप हैं। तल से बाहर निकलने के बाद फिर आप नहीं होते हैं। तब आप परमात्ममय होते हो, आत्ममय होते हो। यह है आपका जागरण, जिसे बुद्धि के परे जाकर ही अनुभव किया जा सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब तक आप बुद्धि के जरिये वाद-विवाद में फंसे रहेंगे, तब तक परमात्मा की अनुभूति तो क्या स्वयं की अंतस चेतना की अनुभूति भी नहीं कर सकते।ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकु मार जी आलोक ने अणुव्रत भवन सैक्टर-24 तुलसी सभागार में जनसभा को संबोधित करते हुए कहे।
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