Hindi, asked by tv231504, 2 months ago

(ख) मंहगाई की समस्या आलेख लिजिए​

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Answered by premlatasinghpls
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nahi pata

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just want to say

menghai

Answered by sujeetrana7370
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Answer:

महँगाई के कारण–वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि अर्थात् महँगाई के बहुत–से कारण हैं। इन कारणों में अधिकांश कारण आर्थिक हैं। कुछ कारण ऐसे भी हैं, जो सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था से सम्बन्धित हैं। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

(क) जनसंख्या में तेजी से वृद्धि–भारत में जनसंख्या के विस्फोट ने वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाने की दृष्टि से बहुत अधिक सहयोग दिया है। जितनी तेजी से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, उतनी तेजी से वस्तुओं का उत्पादन नहीं हो रहा है। इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ है कि अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में निरन्तर वृद्धि हुई है।

(ख) कृषि उत्पादन–व्यय में वृद्धि–हमारा देश कृषिप्रधान है। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। विगत वर्षों से खेती में काम आनेवाले उपकरणों, उर्वरकों आदि के मूल्यों में वृद्धि हुई है। परिणामत: उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होती जा रही है। अधिकांश वस्तुओं के मूल्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि–पदार्थों के मूल्यों से सम्बद्ध होते हैं। इस कारण जब कृषि–मूल्य में वृद्धि हो जाती है तो देश में अधिकांश वस्तुओं के मूल्य अवश्यमेव प्रभावित होते हैं।

(ग) कृत्रिम संप से वस्तुओं की आपूर्ति में कमी–वस्तुओं का मूल्य माँग और पूर्ति पर आधारित है। जब बाजार में वस्तुओं की पूर्ति कम हो जाती है तो उनके मूल्य बढ़ जाते हैं। अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से भी व्यापारी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर देते हैं, जिसके कारण महँगाई बढ़ जाती है।

(घ) मुद्रा प्रसार–जैसे–जैसे देश में मुद्रा प्रसार बढ़ता जाता है; वैसे–वैसे महँगाई भी बढ़ती चली जाती है। तीसरी पंचवर्षीय योजना के समय से ही हमारे देश में मुद्रा–प्रसार की स्थिति रही है, परिणामत: वस्तुओं के मूल्य बढ़ते ही जा रहे हैं। कभी जो वस्तु एक रुपये में मिला करती थी; उसके लिए अब सौ रुपये तक खर्च करने पड़ जाते हैं।

(ङ) प्रशासन में शिथिलता–सामान्यतः प्रशासन के स्वरूप पर ही देश की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। या प्रशासन सिंथिल पड़ जाता है तो मूल्य बढ़ते जाते हैं; क्योंकि कमजोर प्रशासन व्यापारी–वर्ग पर नियन्त्रण नहीं रख पाता। ऐसी स्थिति में कीमतों में अनियन्त्रित और निरन्तर वृद्धि होती रहती है।

(च)घाटे का बजट–योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु सरकार को बड़ी मात्रा में पूँजी की व्यवस्था करनी पड़ती है। पूँजी की व्यवस्था के लिए सरकार अन्य उपायों के अतिरिक्त घाटे की बजट–प्रणाली को भी अपनाती है।

घाटे की यह पूर्ति नए नोट छापकर की जाती है। परिणामतः देश में मुद्रा की पूर्ति आवश्यकता से अधिक हो जाती है। जब ये नोट बाजार में पहुँचते हैं तो वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करते हैं। .

(छ) असंगठित उपभोक्ता–वस्तुओं का क्रय करनेवाला उपभोक्ता वर्ग प्राय: असंगठित होता है, जबकि विक्रेता या व्यापारिक संस्थाएँ अपना संगठन बना लेती हैं। ये संगठन इस बात का निर्णय करते हैं कि वस्तुओं का मूल्य क्या रखा जाए और उन्हें कितनी मात्रा में बेचा जाए। जब सभी सदस्य इन नीतियों का पालन करते हैं तो वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होने लगती है। वस्तुओं के मूल्यों में होनेवाली इस वृद्धि से उपभोक्ताओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

(ज) धन का असमान वितरण हमारे देश में आर्थिक साधनों का असमान वितरण महँगाई का मुख्य कारण है। जिनके पास पर्याप्त धन है, वे लोग अधिक पैसा देकर साधनों और सेवाओं को खरीद लेते हैं। व्यापारी धनवानों की इस प्रवृत्ति का लाभ उठाते हैं और महँगाई बढ़ती जाती है। वस्तुतः विभिन्न सामाजिक–आर्थिक विषमताओं एवं समाज में व्याप्त अशान्तिपूर्ण वातावरण का अन्त करने के लिए धन का समान वितरण होना आवश्यक है। कविवर दिनकर के शब्दों में भी–

शान्ति नहीं तब तक, जब तक

सुख भाग न नर का सम हो,

नहीं किसी को बहुत अधिक हो

नहीं किसी को कम हो।

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