Hindi, asked by dayalprabhu1998, 11 months ago

ख)
मैं क्षितिज-भृकुटि पर घिर धूमिल
चिंता का भार बनी अविरल
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नवजीवन-अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिहन न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन हो अंत खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना;
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!

inki vyakhya kro ​

Answers

Answered by bhatiamona
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Answer:

यह कविता महादेवी वर्मा जी लिखी है | इस कविता में महादेवी वर्मा जी ने भारतीय नारी की व्यथा को बादल के माध्यम से वर्णन किया है।

लड़की का जीवन एक मिट्टी की गुडिया की तरह जिसे अपनी ज़िन्दगी में हर मोड़ पर टूटने और समझोते करने पड़ते है | लड़की को बहार नहीं जाने दिया जाता , उसे शिक्षा से वंचित किया जाता है |  हर समय उसे ही झुकना पड़ता है |   बलिदान , समझौते एक लड़की को करने पड़ते है |लड़की का न कोई होता है , न कभी होगा| बस यही कहते है पराया धन है , इसे तो अगले घर जाना है | यही इतिहास मेरा परिचय थी कल थी आज चली गई | मेरा कोई अस्तित्व नहीं है |

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