(ख) नाँचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकांत
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शांति hindi ucharan
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प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में कवयित्री कहती है कि शहरों में इतनी आबादी बढ़ चुकी है, इतने लोग बढ़ चुके हैं कि वहां पर रहने के लिए घर छोटा होता जा रहा है।
वह कहती हैं यदि नाचने के लिए लोगों को खुला आंगन चाहिए, तो उनको सर्वप्रथम अपने आबादी पर नियंत्रण करना होगा। संथालियों के अपने गीत होते हैं और शहरी लोग फिल्मी गीत से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
वह लोगों को अपने गीतों से परिचित करवाना चाहती हैं, फिल्मी गीतों से नहीं। कवयित्री यह भी कहती हैं कि शहर के लोगों में तनाव ज्यादा है क्योंकि वह खुश रहना भूल गए हैं, वह अपने संस्कृति से ऐसा नहीं चाहते हैं।
वह चाहती हैं उनके समाज के लोग खुलकर हंसे और तनाव से बिल्कुल मुक्त रहें।
कवयित्री इसलिए शहरी वातावरण में नहीं ढलना चाहती है, क्योंकि शहर में रहने के लिए घर छोटे होते जा रहे हैं, बच्चों का खेल का मैदान गायब होता जा रहा है, पशुओं के चरने के लिए हरी घास नहीं मिल रही है और उम्र दराज के लोगों को शांत वातावरण नहीं मिल रहा है।