। खून को 'भानुमती का पिटारा' क्यों कहा गया है?
2. रक्त कणों के निर्माण के लिए किन पौष्टिक तत्वों की जरू
3. रक्त कण शरीर के किस भाग में बनते हैं?
4. रक्त के सफ़ेद कणों को 'वीर सिपाही' क्यों कहा गया है?
5. बिंबाणुओं का क्या काम है?
Answers
> 1) क्योंकि रक्त दिखने में तो द्रव की भांति होता है परन्तु इसके विपरीत उसके अंदर एक अलग दुनिया का ही प्रतिबिम्ब होता है। रक्त दो भागों में विभाजित होता है – एक भाग तरल रूप में होता है जिसे हम प्लाज़्मा के नाम से जानते हैं, दूसरे भाग में हर प्रकार व आकार के कण होते हैं। कुछ सफ़ेद होते हैं तो कुछ लाल, और कुछ रंगहीन होते हैं। ये सब कण प्लाज़्मा में तैरते रहते हैं। रक्त का लाल रंग लाल कणों के कारण होता है क्योंकि रक्त की एक बूंद में इनकी संख्या करीब चालीस से पचपन लाख होती है। इनकी इसी अधिकता के कारण रक्त लाल प्रतीत होता है। इनका कार्य ऑक्सीजन को शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना होता है। लाल कण के बाद सफ़ेद कणों का कार्य रोगाणुओं से हमारी रक्षा करना होता है और जो रंगहीन कण होते हैं जिन्हें हम बिंबाणु कहते हैं। इनका कार्य घाव को भरने में मदद करना होता है। इस प्रकार रक्त की एक बूँद अपने में ही जादुई दुनिया को समेटे हुए है जिसके लिए ‘भानुमती का पिटारा’ कहना सर्वथा उचित है।
2) रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए प्रोटीन, पोषक तत्व और विटामिन की आवश्यकता होती है.
> 3) लाल रक्त कोशिकाओं, अधिकांश सफेद रक्त कोशिकाओं, और प्लेटलेट्स अस्थि मज्जा में पैदा होते हैं, हड्डी के गुहाओं के अंदर नरम फैटी ऊतक। दो प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं, टी और बी कोशिकाएं (लिम्फोसाइट्स), लिम्फ नोड्स और प्लीहा में भी पैदा होती हैं, और टी कोशिकाएं थाइमस ग्रंथि में निर्मित और परिपक्व होती हैं।
> 4) रक्त के सफ़ेद कणों को ‘वीर सिपाही’ कहा गया है क्योंकि यह रोगों के कीटाणुओं को शरीर में घुसने नहीं देते, जहाँ तक संभव हो सके रोगी कीटाणु की कार्य क्षमता को शिथिल कर उनसे डटकर मुकाबला करते हैं। इस प्रकार वे बहुत से रोगों से हमारी रक्षा करते हैं।
Answer:
1) क्योंकि रक्त दिखने में तो द्रव की भांति होता है परन्तु इसके विपरीत उसके अंदर एक अलग दुनिया का ही प्रतिबिम्ब होता है। रक्त दो भागों में विभाजित होता है – एक भाग तरल रूप में होता है जिसे हम प्लाज़्मा के नाम से जानते हैं, दूसरे भाग में हर प्रकार व आकार के कण होते हैं। कुछ सफ़ेद होते हैं तो कुछ लाल, और कुछ रंगहीन होते हैं। ये सब कण प्लाज़्मा में तैरते रहते हैं। रक्त का लाल रंग लाल कणों के कारण होता है क्योंकि रक्त की एक बूंद में इनकी संख्या करीब चालीस से पचपन लाख होती है। इनकी इसी अधिकता के कारण रक्त लाल प्रतीत होता है। इनका कार्य ऑक्सीजन को शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना होता है। लाल कण के बाद सफ़ेद कणों का कार्य रोगाणुओं से हमारी रक्षा करना होता है और जो रंगहीन कण होते हैं जिन्हें हम बिंबाणु कहते हैं। इनका कार्य घाव को भरने में मदद करना होता है। इस प्रकार रक्त की एक बूँद अपने में ही जादुई दुनिया को समेटे हुए है जिसके लिए ‘भानुमती का पिटारा’ कहना सर्वथा उचित है।
1) क्योंकि रक्त दिखने में तो द्रव की भांति होता है परन्तु इसके विपरीत उसके अंदर एक अलग दुनिया का ही प्रतिबिम्ब होता है। रक्त दो भागों में विभाजित होता है – एक भाग तरल रूप में होता है जिसे हम प्लाज़्मा के नाम से जानते हैं, दूसरे भाग में हर प्रकार व आकार के कण होते हैं। कुछ सफ़ेद होते हैं तो कुछ लाल, और कुछ रंगहीन होते हैं। ये सब कण प्लाज़्मा में तैरते रहते हैं। रक्त का लाल रंग लाल कणों के कारण होता है क्योंकि रक्त की एक बूंद में इनकी संख्या करीब चालीस से पचपन लाख होती है। इनकी इसी अधिकता के कारण रक्त लाल प्रतीत होता है। इनका कार्य ऑक्सीजन को शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना होता है। लाल कण के बाद सफ़ेद कणों का कार्य रोगाणुओं से हमारी रक्षा करना होता है और जो रंगहीन कण होते हैं जिन्हें हम बिंबाणु कहते हैं। इनका कार्य घाव को भरने में मदद करना होता है। इस प्रकार रक्त की एक बूँद अपने में ही जादुई दुनिया को समेटे हुए है जिसके लिए ‘भानुमती का पिटारा’ कहना सर्वथा उचित है।2) रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए प्रोटीन, पोषक तत्व और विटामिन की आवश्यकता होती है.
1) क्योंकि रक्त दिखने में तो द्रव की भांति होता है परन्तु इसके विपरीत उसके अंदर एक अलग दुनिया का ही प्रतिबिम्ब होता है। रक्त दो भागों में विभाजित होता है – एक भाग तरल रूप में होता है जिसे हम प्लाज़्मा के नाम से जानते हैं, दूसरे भाग में हर प्रकार व आकार के कण होते हैं। कुछ सफ़ेद होते हैं तो कुछ लाल, और कुछ रंगहीन होते हैं। ये सब कण प्लाज़्मा में तैरते रहते हैं। रक्त का लाल रंग लाल कणों के कारण होता है क्योंकि रक्त की एक बूंद में इनकी संख्या करीब चालीस से पचपन लाख होती है। इनकी इसी अधिकता के कारण रक्त लाल प्रतीत होता है। इनका कार्य ऑक्सीजन को शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना होता है। लाल कण के बाद सफ़ेद कणों का कार्य रोगाणुओं से हमारी रक्षा करना होता है और जो रंगहीन कण होते हैं जिन्हें हम बिंबाणु कहते हैं। इनका कार्य घाव को भरने में मदद करना होता है। इस प्रकार रक्त की एक बूँद अपने में ही जादुई दुनिया को समेटे हुए है जिसके लिए ‘भानुमती का पिटारा’ कहना सर्वथा उचित है।2) रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए प्रोटीन, पोषक तत्व और विटामिन की आवश्यकता होती है.> 3) लाल रक्त कोशिकाओं, अधिकांश सफेद रक्त कोशिकाओं, और प्लेटलेट्स अस्थि मज्जा में पैदा होते हैं, हड्डी के गुहाओं के अंदर नरम फैटी ऊतक। दो प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं, टी और बी कोशिकाएं (लिम्फोसाइट्स), लिम्फ नोड्स और प्लीहा में भी पैदा होती हैं, और टी कोशिकाएं थाइमस ग्रंथि में निर्मित और परिपक्व होती हैं।
1) क्योंकि रक्त दिखने में तो द्रव की भांति होता है परन्तु इसके विपरीत उसके अंदर एक अलग दुनिया का ही प्रतिबिम्ब होता है। रक्त दो भागों में विभाजित होता है – एक भाग तरल रूप में होता है जिसे हम प्लाज़्मा के नाम से जानते हैं, दूसरे भाग में हर प्रकार व आकार के कण होते हैं। कुछ सफ़ेद होते हैं तो कुछ लाल, और कुछ रंगहीन होते हैं। ये सब कण प्लाज़्मा में तैरते रहते हैं। रक्त का लाल रंग लाल कणों के कारण होता है क्योंकि रक्त की एक बूंद में इनकी संख्या करीब चालीस से पचपन लाख होती है। इनकी इसी अधिकता के कारण रक्त लाल प्रतीत होता है। इनका कार्य ऑक्सीजन को शरीर के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना होता है। लाल कण के बाद सफ़ेद कणों का कार्य रोगाणुओं से हमारी रक्षा करना होता है और जो रंगहीन कण होते हैं जिन्हें हम बिंबाणु कहते हैं। इनका कार्य घाव को भरने में मदद करना होता है। इस प्रकार रक्त की एक बूँद अपने में ही जादुई दुनिया को समेटे हुए है जिसके लिए ‘भानुमती का पिटारा’ कहना सर्वथा उचित है।2) रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए प्रोटीन, पोषक तत्व और विटामिन की आवश्यकता होती है.> 3) लाल रक्त कोशिकाओं, अधिकांश सफेद रक्त कोशिकाओं, और प्लेटलेट्स अस्थि मज्जा में पैदा होते हैं, हड्डी के गुहाओं के अंदर नरम फैटी ऊतक। दो प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं, टी और बी कोशिकाएं (लिम्फोसाइट्स), लिम्फ नोड्स और प्लीहा में भी पैदा होती हैं, और टी कोशिकाएं थाइमस ग्रंथि में निर्मित और परिपक्व होती हैं।> 4) रक्त के सफ़ेद कणों को ‘वीर सिपाही’ कहा गया है क्योंकि यह रोगों के कीटाणुओं को शरीर में घुसने नहीं देते, जहाँ तक संभव हो सके रोगी कीटाणु की कार्य क्षमता को शिथिल कर उनसे डटकर मुकाबला करते हैं। इस प्रकार वे बहुत से रोगों से हमारी रक्षा करते हैं।