Hindi, asked by ukeyraj, 7 months ago

४) 'खान-पान के बारे में अपने विचार लिखिए?​

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Answered by kumaranmolpandey1235
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स्वास्थ्य वैज्ञानिक आजकल खानपान की बदलती प्रवृत्तियों को स्वास्थ्य के लिये खतरनाक बता रहे हैं। आज का युवा वर्ग बा•ार में बने भोज्य पदार्थों के साथ ही ठंडे पेय का उपयोग कर रहा है। जिस कारण बड़ी आयु में होने वाले विकार अब उनमें भी दिखाई देने लगे हैं। जहां पहले युवा वर्ग को देखकर यह माना जाता था कि वह एक बेहतर स्वास्थ्य का स्वामी है और चाहे जो काम करना चाहे कर सकता है। पर अब यह सोच खत्म हो रही है। अपच्य भोज्य पदार्थों और ठंडे पेय का सेवन युवाओं के शरीर में ऐसे विकारों को पैदा कर रहा है जो 60- 70 वर्ष की आयु में होते हैं। मनु स्मृति में कहा गया है

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Answered by NetraJ7
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सीतामढ़ी। स्वास्थ्य वैज्ञानिक आजकल खानपान की बदलती प्रवृत्तियों को स्वास्थ्य के लिये खतरनाक बता रहे हैं। आज का युवा वर्ग बा•ार में बने भोज्य पदार्थों के साथ ही ठंडे पेय का उपयोग कर रहा है। जिस कारण बड़ी आयु में होने वाले विकार अब उनमें भी दिखाई देने लगे हैं। जहां पहले युवा वर्ग को देखकर यह माना जाता था कि वह एक बेहतर स्वास्थ्य का स्वामी है और चाहे जो काम करना चाहे कर सकता है। पर अब यह सोच खत्म हो रही है। अपच्य भोज्य पदार्थों और ठंडे पेय का सेवन युवाओं के शरीर में ऐसे विकारों को पैदा कर रहा है जो 60- 70 वर्ष की आयु में होते हैं। मनु स्मृति में कहा गया है

न भु†जीतोद्धतस्नेहं नातिसौहित्यमाचरेत्।नातिप्रगे नातिसायं न सत्यं प्रतराशित:।।

अर्थात -जिन पदार्थों से चिकनाई निकाली गयी हो उनका सेवन करना ठीक नहीं है। दिन में कई बार पेट भरकर, बहुत सवेरे अथवा बहुत शाम हो जाने पर भोजन नहीं करना चाहिए। प्रात:काल अगर भरपेट भोजन कर लिया तो फिर शाम को नहीं करना चाहिए।“स्वास्थ्य वैज्ञानिकों'' के अनुसार हमारे भोजन का परंपरागत स्वरूप ही स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त है। इस संबंध में श्रीमछ्वागवत गीता में कहा गया है कि रस और चिकनाई युक्त, देर तक स्थिर रहने वाले तथा पाचक भोजन सात्विक मनुष्य को प्रिय होता है। भारत जैसे विकासशील देशों में संतुलित भोजन न लेने के कारण कमजोरी कुपोषण, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी तथा अन्य विभिन्न रोग बहुत बड़ी समस्याएं उत्पन्न कर रहे हैं। बच्चों और स्त्रियों में बहुत से रोगों की जड़ में संतुलित भोजन ना लेने के कारण होने वाला कुपोषण ही होता है। प्रतिवर्ष लाखों बच्चे रोगों के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं7 इस तरह संतुलित एवं पौष्टिक भोजन का महत्तव अपने आप ही जाहिर हो जाता है। इसी तरह भारत में प्रतिवर्ष 40 हजार बच्चे विटामिन 'ए' की कमी के कारण अंधे हो जाते हैं। कुपोषण के कारण बच्चों की रोगों से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है और उन्हें संक्रामक रोग शीघ्र जकड़ लेते हैं।खाने में सभी जरुरी प्रोटीन, विटामिन आदि को संतुलित मात्रा में शामिल करना ही संतुलित भोजन है।हमारे शरीर को कार्य करने के लिए ऊर्जा (शक्ति) एवं शरीर के विकास के लिए कई तरह के खाद्य पदार्थों की जरूरत होती है। ये विभिन्न खाद्य हमें भोजन द्वारा प्राप्त होते हैं।संतुलित भोजन के आवश्यक खाद्य पदार्थ हैं-(1) कार्बोज या कार्बोहाइड्रेट्स, (2) प्रो¨टस, (3) वसा, (4) विटा¨मस, (5) खनिज-लवण (6) सा़फ पानी। ये 6 सामग्री भोजन में शामिल करना ही संतुलित भोजन है। याद रखें संतुलित भोजन भी बच्चों और बड़ों को कई तरह के संक्रमणों से सुरक्षित रखता है।

शरीर को एनर्जी के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता होती है, उनकी पूर्ति दूध, फल, रोटी-सब्जियों से होती है। हम स्वस्थ रहें इसके लिए भोजन करने और बनाने की कला का भी ज्ञान चाहिए। भोजन भूख लगने पर ही करना चाहिए। यदि भूख नहीं लगती है तो खाना नहीं खाना चाहिए। ¨चता, शोक, भय, क्रोध आदि में किया गया भोजन अच्छी तरह से नहीं पचता। अत्यधिक शारीरिक थकान के तुरंत बाद भोजन नहीं करना चाहिए । ऐसा करने से उल्टी हो सकती है। भोजन करने के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए।'विटामिन डी' अर्थात् धूप का सेवन अवश्य करें। भोजन करते समय कम मात्रा में पानी पीना चाहिए तथा खाना खाने के बाद जब प्यास लगे तब पानी पियें। पानी पीने के भी हैं कुछ खास नियम और सही तरीके है।भोजन को बहुत धीरे-धीरे खूब चबा-चबाकर करना चाहिए। भोजन करने के बाद पेशाब अवश्य करें।खाना खाते समय - सबसे पहले कड़े और सख्त पदार्थ, बीच में नर्म पदार्थ और अंत में पतले पदार्थ खाने चाहिए।दोबारा गर्म किया हुआ खाना या बासी खाने से बचना चाहिए 7नीबू का रस पानी में मिलाकर अवश्य पीना चाहिए । शाम का खाना हल्का होना चाहिए।सप्ताह में एक दिन व्रत अवश्य रखना चाहिए ।

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