खान पान की मिश्रित संस्कृति से 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना कैसे बलवती हो रही है?
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समय के साथ हम मनुष्य भी बादल रहे है , पहले घर में स्त्रियाँ सभी प्रकार के व्यंजन बनाया करती थी लेकिन अब तो यह सब कुछ बाज़ार में आसानी से मिल जाते है|
अब सभी लोग अपने घरों में ही
इडली, डोसा, समोसा, नूडल्स, रोटी, दाल ,साग, दहीं बल्ले आदि अनेक
प्रकार के व्यंजनों को बनाकर उनका प्रयोग करते है।
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