खानपान की बदलती तस्वीर का अर्थ स्पष्ट करो
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खानपान के मामले में स्थानीयता का अर्थ है कि वे व्यंजन जो स्थानीय आधार पर बनते थे। जैसे मुम्बई की पाव-भाजी, दिल्ली के छोले-कुलचे, मथुरा के पेड़े व आगरे के पेठे-नमकीन तो कहीं किसी प्रदेश की जलेबियाँ, पूड़ी और कचौड़ी आदि स्थानीय व्यंजनों का अत्यधिक चलन था और अपना अलग महत्त्व भी था।
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खानपान की इस मिश्रित संस्कृति का सबसे सकरात्मक पक्ष यह है कि नई पीढ़ी को देश-विदेश के व्यंजनों को जानने का अवसर मिला है। अब कामकाजी महिलाएँ जल्दी तैयार होनेवाले व्यंजन को पसंद करती हैं| मध्यमवर्गीय जीवन में भोजन विविधता अपनी जगह बना चुकी है। खान-पान की नई संस्कृति में राष्ट्रीय एकता के नये बीज मिलते हैं।
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