खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकी और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
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ये प्रश्न ‘यशपाल’ द्वारा लिखित व्यंग्यात्मक कहानी ‘लखनवी अंदाज’ से लिया गया है।
खीरों के संबंध में नवाब के व्यवहार को उनकी सनक माना जा सकता है, क्योंकि नवाब को अपने अभिजात्य वर्ग के होने का अभिमान होता है, उनमें अक्सर झूठी शान दिखाने की भी आदत होती है। चाहे कुछ भी हो जाये पर उनमें नवाबी वाला पाखंड नही जाता। एक ऐसा ही किस्सा है...
एक बार एक नवाब साहब अपने बिस्तर पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। तभी उन्हे खबर मिली कि दुश्मनों ने आक्रमण कर दिया है। जिसको जिधर मौका मिला भाग लिया। अब नवाब साहब ठहरे नवाब। वो खुद से अपना जूता भी नही पहनते थे, उनका नौकर आकर पहनाता था। वो अपने नौकर को आवाज लगाते रह गये, पर कोई न आया। आता भी कैसे सब लोग तो डरकर भाग चुके थे। अब नवाब साहब ने खुद ही जूता पहन कर दुश्मन से बच के निकल जाने का कष्ट नही किया क्योंकि स्वयं से जूता पहनना उनकी शान के खिलाफ था। वो हिले नही और दुश्मन उनके सर पर आ गया। उनको पकड़ लिया गया। अपनी नवाबी सनक के चलते नवाब साहब दुश्मन की गिरफ्त में आ गये। थोड़ी अपनी नवाबी वाली नफासत कम करते तो बचकर निकल भाग सकते थे।
Answer:
नवाब साहब बड़े सनकी होते हैं उनको जिसका जो शौक पड़ जात है वे उसे सनक की हद तक ते जाते हैं चाहे वह तीतर बटेर लड़ाने का शौक हो या पतंगबाजी का शौक हो वे अपनी सनक में सब कुछ भूल जाते हैं जब यह पतंग उड़ाते हैं तो खाना-पीना तक भूल जाते हैं यह शतरंज खेलने के लिए बैठ जाए तो इनको उठा नहीं किसी के बस की बात नहीं ।