खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए
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उनकी सनक माना जा सकता है, क्योंकि नवाब को अपने अभिजात्य वर्ग के होने का अभिमान होता है, उनमें अक्सर झूठी शान दिखाने की भी आदत होती है। चाहे कुछ भी हो जाये पर उनमें नवाबी वाला पाखंड नही जाता। ... एक बार एक नवाब साहब अपने बिस्तर पर बैठे हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे।
नवाबों की सनक और शोक यह रही है कि वे अपनी वस्तु , हैसियत आदि बढ़ा चढ़ाकर दिखाते और बिताते थे । वे बात बात में दिखावा करते थे । एक बार लखनऊ के ही नवाब जो प्रात: काल किसी पार्क में आया करते थे । एक दिन एक साधारण सा दिखने वाला आदमी वहीं भ्रमण करने आ गया । उसने नवाब साहब को सलाम ठोका और पूछा "नवाब साहब क्या खा रहें हैं ?" नवाब साहब बड़े गर्व से उत्तर दिया - बादाम । नवाब साहब जेब में हाथ डालकर अभी निकाला ही था कि उनका पैर मूड गया और वे गिर गए । उनके हाथ से खाने का सामान बिखर गया । उस व्यक्ति ने देखा खाने के बिखरे सामान में एक भी बादाम न था सारी मूंगफलियां थी । अब नवाब साहब का चेहरा देखने लायक था ।
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