(ख) रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी मे उठती रह-रह हुक, घर जाने की चाह है घेरे।।
1.'कच्चे धागे' यहाँ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है?
2.'नाव' को किसका प्रतीक माना गया है?
3. कवयित्री के स्वर में कैसा भाव है?
5. कच्चे सकोरे' से क्या तात्पर्य है?
Answers
1.'कच्चे धागे' यहाँ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है?
कच्चे धागे' की तुलना लेखिका ने अपने जिन्दगी से कि है, कच्चे धागे की डोरी का अर्थ सांसों द्वारा चली गई है| वह प्रभु का इंतजार कर रही है कि कब प्रभु उसकी पुकार सुनेंगे और ज़िन्दगी को पार लगाएंगे|
2..'नाव' को'नाव' को किसका प्रतीक माना गया है?
लेखिका ने अपने जिन्दगी को नव का प्रतीक माना गया है| नाव का मतलब है जीवन की डोर| इस नाव को हम कच्चे धागे की रस्सी से खींच रहे है| यह रस्सी बहुत कमज़ोर होती है ,छोटी-छोटी बातों से टूट जाती है|
3. कवयित्री के स्वर में कैसा भाव है?
कवयित्री के स्वर में एक उम्मीद का भाव है| एक इंतजार का रही है कब प्रभु उसकी पुकार सुनेगे और ज़िन्दगी को पार लगाएंगे| उनके मन में प्रभु से बार-बार मिलने की इच्छा जाग जाती है|
4 .कच्चे सकोरे' से क्या तात्पर्य है?
कच्चे सकोरे से तात्पर्य यह है कि भक्त प्रभु से मिलने के सारे प्रयास कर रहा है लेकिन वह सारे प्रयास बेकार जा रहे है जिस प्रकार कच्चे सकोरे में पानी भरने की कोशिश की जाती है लेकिन पानी इधर-उधर बह जाता है |
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plz explain it..
Answer:
नश्वर
मानुष
परमात्मा का