ख) साहित्यकार समाज का फोटोग्राफर
क्यों नहीं है?
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साहित्य समाज का दर्पण होता है, किंतु इस कथन का यह आशय नहीं कि साहित्यकार, समाज का फोटोग्राफर है और सामाजिक विद्रूपताओं, कमियों, दोषों, अंधविश्वासों और मान्यताओं का यथार्थ चित्रण करना उसका उद्देश्य है। साहित्य का प्रासाद समाज की पृष्ठभूमि पर ही प्रतिष्ठित होता है। जिस काल की जैसी सामाजिक परिस्थितियाँ होंगी, उसका साहित्य निस्संदेह वैसा ही होगा। साहित्य में समाज का जीवन-स्पंदन विद्यमान रहता है। इसी अर्थ में साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है।
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