(ख) संपाती कौन था? उसने वानरों की सहायता किस प्रकार की?
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जब सभी वानर - भालू सीताजी की खोज में निकले थे। तो सभी थक हार कर समुद्र किनारे सीता माता की खोज में बैठे थे। उन्हें सीता माता का पता लगाना मुश्किल लग रहा था। तभी वहां पर उनकी भेंट संपाती नाम के गरुड़ पुत्र से हुई।
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संपाति जटायु का भाई था।
संपाति जटायु का भाई था।हनुमान जब सीता को ढूंढ़ने जा रहा था तब मार्ग में गरुड़ के समान विशाल पक्षी से उसका परिचय हुआ। उसका परिचय प्राप्त कर वानरों ने जटायु की दु:खद मृत्यु का समाचार उसे दिया। उसी ने वानरों को लंकापुरी जाने के लिए उत्साहित किया था।
संपाती नाम का गृध्र जटायु का बड़ा भाई था। दोनों भाई अत्यंत घमण्ड में वृत्तसूरि को मारकर आकाश में उड़ गए और सूर्य की ओर चल पड़े। दोनों ने सूर्य के पीछे विंध्याल जाने की योजना बनाई। जब सूर्य के ताप से जटायु के पंख जलने लगे तो संपाती ने उन्हें अपने पंखों से छिपा लिया। इस प्रकार जटायु तो बच गया लेकिन संपाती के पंख जल गए और उसने उड़ने की क्षमता खो दी। वह विंध्य पर्वत पर जा गिरा। सीता को न पा सकने वाले हनुमान, अंगद आदि जब उस पर्वत पर बोले तो संपाती ने जटायु का नाम सुनकर जटायु को विस्तार से जानना चाहा। यह जानते हुए कि रावण ने उसे मार डाला था, उसने उन्हें बताया कि जब वह पहले विंध्य पर्वत पर गिरा था, जब उसके पंख में आग लग गई थी, तो वह छह दिनों तक बेहोश रहा, फिर निशाकरी नामक एक महान ऋषि की गुफा में प्रवेश किया।
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