ख सारी खिनता, निराश और थकावट सब छूमंतर हो गई।
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पर उस एक क्षण के हिम दर्शन ने हममें जाने क्या भर दिया था। सारी खिन्नता, निराशा, थकावट सब छुमन्तर हो गई। हम सब आकुल हो उठे। अभी ये बादल छंट जायेंगे और फिर हिमालय हमारे सामने खड़ा होगा-निरावृत्त… असीम सौंदर्यराशि हमारे सामने अभी-अभी अपना यूँघट धीरे से खिसका देगी और… और तब? और तब? सचमुच मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था। शुक्ल जी शांत थे, केवल मेरी ओर देखकर कभी-कभी मुस्करा देते थे, जिसका अभिप्राय था, ‘इतने अध पीर थे, कौसानी आया भी नहीं और मुँह लटका लिया। अब समझे यहाँ का जादू?
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sorry for anwser in hindi bro
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