(ख) “सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है।
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।"
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(ख) “सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है।
बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।"
रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित कविता की इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि सहनशीलता क्षमा और दया यह गुण जिस व्यक्ति के पास होते हैं, तो इन गुणों से परिपूर्ण उस व्यक्ति को संसार तभी पूजता है, जब वह मनुष्य पराक्रमी होता है अर्थात सहनशीलता, क्षमा और दया के साथ-साथ पराक्रमी होना भी आवश्यक है।
जो मनुष्य पराक्रमी है, उसके पास सहनशीलता, क्षमा और दया जैसे गुण हैं तो सोने पर सुहागा जैसी बात है। संसार ऐसे व्यक्तियों को ही पूजा करता है उनकी सराहना करता है। कायर व्यक्ति ना सहनशीलता दिखा सकते ना क्षमा और दया दिखा सकते, क्योंकि काय व्यक्ति में क्षमा करने की सामर्थ नहीं होती, क्षमा वही कर सकता है जो सामर्थ्यवान है, इसलिए सहनशीलता, क्षमा और दया ऐसे गुण धारण करना पराक्रमी मनुष्य का स्वभाव है।
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Ramdhari singh dinkar ka hindi sahitya me yogdan par nimbandh
Explanation:
क्षमा शील व्यक्ति ही अपने कर्म-दहन कर पाता है
क्षमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात ,
का रहीम हरि को घटो, जो भृगु मारी लात।
क्षमा धीर पुरुष ही नहीं बलशाली का भी आभूषण है। क्षमाशीलता आपको स्वतंत्र करती है ,उस अतीत से जिसमें कईओं की बदसुलूकी आपके अवचेतन में आज भी जगह बनाये हुए है। आपके वर्तमान को आपकी सेहत को असरग्रस्त कर रही है। आपको आगे बढ़ने से रोक रही है।
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