खि्श्चिन धर्म और इस्लाम धर्म अच्छा भारतीय समाज आवरी प्रभाव स्पष्ट करा
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अन्य धर्मों से इस्लाम का संपर्क समय और परिस्थ्ति से प्रभावित रहा है। यह संपर्क मुहम्मद साहब के समय से ही शुरु हो गया था। उस समय इस्लाम के अलावा अरब में ३ परम्पराओं के मानने वाले थे। एक तो अरब का पुराना धर्म जोकि इस्लाम यानि दीने इब्राहीमी था (जो अब तक लुप्त हो चुका था) था जिसकी वैधता इस्लाम ने नहीं स्वीकार की। इसका कारण था कि दीने इब्राहीमी के मानने वाले मुशरिक हो चुके थे जो कि इस्लाम के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध था। २- ईसाई धर्म और ३- यहूदी धर्म को इस्लाम ने वैध तो स्वींकार कर लिया पर इस्लाम के अनुसार इन धर्मों के अनुयायियों और पुजारियों ने इनमें बदलाव कर दिये थे। मुहम्म्द साहब ने अपने मक्का से मदीना पहुंचने के बाद वहाँ के यहूदियों के साथ एक संधि करी जिसमें यहूदियों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता को स्वींकारा गया।[1] अरब बहुदेववादियों के साथ भी एक संधि हूई जिसे हुदैबा की सुलह कहते हैं।
मुहम्मद साहब के बाद से अक्सर राजनैतिक कारण अन्य धर्मों की ओर् इस्लाम का व्यवहार निर्धारित करते आये हैं। जब राशिदून खलीफाओं ने अरब से बाहर कदम रखा तो उनका सामना पारसी धर्म से हुआ।[2] इन सभी धर्मों के अनुयायियों को जिम्मी कहा गया। मुसलमान खलीफाओं को इन्हें एक शुल्क देना होता था जिसे जिज़्या कहते हैं। इसके बदले राज्य उन्हें सुरक्षा देता था और आम मुसलमानों की तरह उन्हें सेना में शामिल होने और ज़कात देने (एक सालाना दान जो हर मुसलमान को गरीबों को देना अनिवार्य है) के लिये मजबूर नहीं करता था।[3]