खेती-बाड़ी पर निबंध
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कृषि की खोज से पहले मानव भोजन की तलाश में विभिन जगह भटकता था लेकिन जब उसने खेती शुरू की तो उसे खाने के लिए और भटकना नहीं पड़ा और इससे एक जगह पर समाज और सभ्यता का निर्माण संभव हो पाया। माना जाता है की खेती की शुरुआत पश्चिम एशिया से हुई जहां हमारे पूर्वज गेहूं और जौ उगाने लगे और साथ ही भेद, बकरी, गाय और भैंस जैसे जानवर पालने लगे।
ऐसा माना जाता है कि मनुष्य ने खेती करना 7500 बीसी में ही शुरू कर दिया था और 3000 बीसी वह समय था जब कृषि का मिश्र देशों और फिर सिन्धु सभ्यता तक तेजी से विस्तार हुआ और इस सभ्यता में मोहनजोदड़ो से हड़प्पा क्षेत्र को कृषि विस्तार का केंद्र माना जाता है।
वैदिक काल में कृषि का महत्त्व बढ़ा और साथ ही इसमें लोहे के आधुनिक औजारों का भी प्रयोग किया जाने लगा और इसके बाद बुद्ध के समय में पेड़ों को महत्त्व दिया जाने लगा जिससे कृषि को बढ़ावा मिला। इसके बाद सिंचाई की तकनीक की खोज की गयी जिससे अधिक लोग कृषि में सक्षम हुए क्योंकि अब कृषि के लिए नदी किनारे रहना जरूरी नहीं था। इस काल में मुख्यतः चावल और गन्ने आदि जैसी फसल बोई जाने लगी।
इसके बाद ब्रिटिश युग में कपास और नील जैसी वाणिज्यिक फासले उगाई जाने लगी जिससे कृषि में एक बड़ा बदलाव आया। अब लोग खाने के साथ साथ मुनाफे के लिए भी खेती करने लगे। इन वाणिज्यिक फसलो का प्रयोग ब्रिटिश कच्चे माल की तरह और यूरोपियन देशों में बेचने के लिए करने लगे। भारत में खाद्य फसलों की जगह भी वाणिज्यिक फसलें उगाने पर जोर दिया गया जिससे आज़ादी के समय भारत में खाद्य संकट आ गया।
हालांकि जल्द ही भारत में जल्द ही हरित क्रांति हुई जिससे यह खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया साथ ही यह दुसरे देशों में निर्यात भी करने लग गया।