Hindi, asked by archishah32, 4 months ago

खोता हुआ मासूम बचपन पर ४ मिनट का भाषण urgent ​

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Answered by biharautobegusarai
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Explanation:

दुनियाभर में बच्चों के कल्याण के लिए बहुत से कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद गरीब और उपेक्षित बच्चों का कल्याण नहीं हो पा रहा। कहीं वे बाल मजदूरी के शिकार हैं तो कहीं उन्हें स्कूल के दर्शन तक नसीब नहीं। कहीं उनका यौन उत्पीड़न हो रहा है तो कहीं वे कुपोषण और भूख के चलते मौत के शिकार हो रहे हैं।

दुनियाभर में बच्चों पर होने वाली ज्यादतियों को रोकने और उनके कल्याण के उद्देश्य से 14 दिसंबर 1954 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में हर साल 20 नवम्बर को विश्व बाल दिवस मनाने संबंधी प्रस्ताव 836 (9) रखा गया, जिसके स्वीकार होने पर वैश्विक स्तर पर बाल दिवस का आयोजन अस्तित्व में आ गया।

विश्व बाल दिवस के उद्देश्य आज तक पूरे नहीं हो पाए हैं, जिससे बाल अधिकार संरक्षण से संबंधित संगठन ही नहीं, बल्कि खुद संयुक्त राष्ट्र भी चिंतित है।

संयुक्त राष्ट्र में महासचिव की ओर से बाल एवं सशस्त्र संघर्ष मामलों से संबंधित विशेष प्रतिनिधि राधिका कुमारस्वामी का कहना है कि दुनियाभर में बच्चों की हत्या, यौन उत्पीड़न, अपहरण और उन्हें अपंग बना देने जैसी घटनाएँ जारी हैं। इन्हें रोकने के लिए किए गए प्रयासों में थोड़ी प्रगति तो हुई है, लेकिन अभी प्रयासों को दुगुना किए जाने की जरूरत है।

अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में तो हालात और भी खराब हैं, जहाँ व्रिदोही संगठन बच्चों के हाथों में बंदूक और हथगोले थमकार उनका बचपन लील जाते हैं। कुमारस्वामी का कहना है कि इराक, चाड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और अफगानिस्तान जैसे देशों में बच्चों की हालत दयनीय है।

वर्ष 2000 में विश्वभर के नेताओं ने 2015 तक सहस्राब्दि विकास लक्ष्य हासिल करने की समय सीमा रखी। यूनीसेफ का कहना है कि इसमें रखे गए आठ लक्ष्यों में से छह सीधे-सीधे बच्चों से जुड़े हैं, लेकिन इन्हें हासिल करने की दिशा में कुछ विशेष दिखाई नहीं दे रहा है।

कई बाल अधिकार संरक्षण कार्यकर्ता बच्चों के कल्याण से संबंधित कोई कारगर नीति न बन पाने की वजह राजनेताओं को मानते हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य संध्या बजाज का कहना है कि बच्चों के कल्याण के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

उन्होंने कहा कि क्योंकि बच्चे मतदाता नहीं होते, इसलिए वे नेताओं के एजेंडे शामिल नहीं होते। संध्या ने कहा मेरा निजी विचार यह है कि बच्चों को मतदान का अधिकार दे दिया जाना चाहिए, ताकि नेता उनके बारे में भी सोचे।

Answered by sharadgidde61
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मुझे लगता है की ,हर एक को अपना बचपन जी भर के जी लेना चाहीये। बचपन जैसे प्यारे पल हमे जीवन भर नही मिलते। बचपन मे हमे जादा से जादा माँ का साथ मिलता है। जरुरत से जादा खेलते है हम। कही पर भी भटकते है हम ।और जब सारा दीन घुम कर हम घर आते थे तब हमे पापा की डाट खाने से माँ ही बचाती है। पर अब ओ दीन नही रहे । सुबह जल्दी उठकर स्कुल जाना पडता है। स्कुल मे बहुत जादा स्वाध्याय देते है और बच्चे अपना सारा वक्त इसमे ही रह जाते है। इसी तरहा बच्चे अपना सारा बचपन खो रहे है । उन्हे खेलना क्या होता है वही पता नही है । ओ कीसी मराठी कवी ने कहा है:।।लहानपण देगा देवा मुंगी साखरेचा खडा।। पहले जमाने के बच्चे बहुत खेल खेलते थे । इसीलिये मजबुत थे। हमारे जमाने वाले बच्चे मोबाईल गेम ,tv इनमे ही खोये रहते है । उन्होने भी घर के बाहर जाकर खेलना चाहीये ,नये मित्र बनाने चाहीये। और सशक्त रहना चाहीये ।ये घर मे रहकर थोडा बहुत पडलेना चाहीये,और नही तो सीधा दोस्तों के साथ मैदान पर खेलना चाहीये। ऐसा मुझे लगता है। और फीर आपका बचपन लो खुशीयोंसे महक उठेगा।बचपन खोना नही चाहीये । बचपन के जो पल,यादे होती हैना ओ बहुत अच्छा होती है।

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