खोता कुछ भी नहीं यहां पर , केवल जिल्द बदलती पोथी का क्या आशय है
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ये पंक्तियाँ हिंदी के प्रसिद्ध कवि और गीतकार ‘गोपालदास नीरज‘ की काव्य रचना “छिप-छिप अश्रु बहाने वालों” से ली गयीं हैं।
इन पंक्तियों में कवि के कहने का आशय है कि ये मानव शरीर तो नष्ट होने वाला ही है पर आत्मा अमर है। आत्मा पोथी के समान है और शरीर पोथी पर चढ़ी हुई जिल्द के समान है। जिस प्रकार जिल्द के खराब हो जाने पर पोथी या पुस्तक पर नई जिल्द चढ़ा लेते हैं। उसी प्रकार मानव शरीर भी जिल्द की तरह है और इसको खराब होने पर त्यागना ही पड़ता है और फिर आत्मा नया शरीर धारण करती है।
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"खोता कुछ भी नहीं यहां पर , केवल जिल्द बदलती पोथी" का आशय है की मानव शरीर तो समय के साथ ढल जाता है लेकिन आत्मा सदैव अमर रहती है. इसलिए कवि कहते हैं कि "जिल्द बदलती पोथी" अर्थात आत्मा शरीर बदलती है।
Explanation:
- प्रस्तुत पंक्तियाँ गोपालदास नीरज जी की उत्तम काव्य रचना "छिप-छिप अश्रु बहाने वालों" से गृहीत की गयीं हैं।
- इन पंक्तियों के ज़रिये कवि ने मानव शरीर के मर्त्य स्वभाव की चर्चा की है।
- कवि मानव शरीर को जिल्द की उपमा देते हैं और कहते हैं कि इस आत्मा रुपी पोथी पर मानव शरीर केवल जिल्द सामान है जिसे एक दिन नष्ट होना है।
- जिस प्रकार पोथी जिल्द बदलती है उसी प्रकार आत्मा शरीर बदलती है और नया शरीर ग्रहण करती है।
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