खेत की धरती बने न बंजर, चले न जादू-टोना
दुकिया दादी, अन्नों बेटा,
झूम-झूम कर गाएँ,
पकी फसल को डसने वाले,
सफल नही हो पाएँ।।
'सत्यमेव जयते' बन-बनके , खाएँ भर-भर दौना
सुखुवा, दुखुवा, गंगू, मंगू .
खुद ही जोते –बोएँ।
अपनी फसल आप ही काटें,
• और न ज्यादा रोएँ।।
जो खोया सो खोया भइया, वक्त नही अब खोना।
प्रगति पथ पर निर्माणों के
नव स्वर संधानों।
समता की सुरसरि के.
सुख को भागीरथ जानो।।
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nice poem..... but what can we do???
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oh, a wonderful poem
Explanation:
did you wrote it‽
by the way, you posted it(as a question)?
wonderful.
plZ mark it as the briliantest ⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
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