ख) 'दोहे' शीर्षक के अंतर्गत संकलित दोहों से आपको किन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है?
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आज के कलयुग में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जो महान कबीर और तुलसीदास के दोहों को पढ़ना पसंद करते हैं. मैंने भी जितनी बार कबीर और रहीम के दोहे लिखे वह हमेशा अधिक पढ़े गए इसीलिए इस बार मैंने फिर आप लोगों के लिए इंटरनेट से कुछ रहीम के दोहे अर्थ सहित ढूंढे हैं.रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानिसैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानिकविवर रहीम कहते हैं कि कभी भी किसी कार्य और व्यवहार में अति न कीजिये। अपनी मर्यादा और सीमा में रहें। इधर उधर कूदने फांदने से कुछ नहीं मिलता बल्कि हानि की आशंका बलवती हो उठती है.कबीर के दोहे हिन्दी में अर्थ सहित यही रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोयबैर प्रीति अभ्यास जस, होत होत ही होय
कविवर रहीम कहते हैं कि प्रीति, अभ्यास और प्रतिष्ठा में धीरे धीरे ही वृद्धि होती है। इनका क्रमिक विकास की अवधि दीर्घ होती है क्योंकि यह सभी आदमी जन्म के साथ नहीं ले आता। इन सभी का स्वरूप आदमी के व्यवहार, साधना और और आचरण के परिणाम के अनुसार उसके सामने आता है।
जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, यह रहीम जग होयमंड़ए तर की गाँठ में, गाँठ गाँठ रस होय
कविवर रहीम कहते हैं कि यह संसार खोजकर देख लिया है, जहाँ परस्पर ईर्ष्या आदि की गाँठ है, वहाँ आनंद नहीं है. महुए के पेड़ की प्रत्येक गाँठ में रस ही रस होता है क्योंकि वे परस्पर जुडी होतीं हैं.
जलहिं मिले रहीम ज्यों, कियो आपु सम छीरअंगवहि आपुहि आप त्यों, सकल आंच की भीर
कविवर रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार जल दूध में मिलकर दूध बन जाता है, उसी प्रकार जीव का शरीर अग्नि में मिलकर अग्नि हो जाता है.
जसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देहधरती पर ही परत है, शीत घाम और मेहकविवर रहीम कहते हैं कि इस मानव काया पर किसी परिस्थिति आती है वैसा ही वह सहन भी करती है। इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा ऋतु आती है और वह सहन करती है।
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