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देखते देखा मुझे तो एक बार,
उस भवन की ओर देखा, छिन्न तार।
देख कर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से,
जो मार खा रोयी नहीं।
सजा सहज सितार
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुधर
दुलक माथे से गिरे सीकर
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -
'मैं तोड़ती पत्थर'।
निर 30 शब्दों में निबंध लिरि
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देखते देखा मुझे तो एक बार,उस भवन की ओर देखा, छिन्न तार।देख कर कोई नहीं,देखा मुझे उस दृष्टि से,जो मार खा रोयी नहीं।सजा सहज सितारसुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकारएक क्षण के बाद वह काँपी सुधरदुलक माथे से गिरे सीकरलीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -
मै तोड़ती पत्थर'।
सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
संदर्भ :
- प्रस्तुत पद्यांश " तोड़ती पत्थर " कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता है सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।
प्रसंग :
- इन पंक्तियों में कवि निराला जी ने एक असहाय मजदूरिन का वर्णन बड़े मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है ।
व्याख्या :
- कवि मजदूरिन की दयनीय दशा को देख रहा था तथा मजदूरिन ने कवि को अपनी ओर देखते देख लिया। उसने एक क्षण के लिए विशाल भवन को देखा, जब वहां उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो उसने कवि की ओर देखा। कवि ने उसकी पीड़ा महसूस की, उस स्त्री की दशा एक शोषित व पीड़ित के समान थी जिसके आंसू सूख गए थे।
#SPJ3
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