खाद्य पदार्थ की शुद्धता की जांच के लिए किसी मान्यता प्राप्त चीन का होना आवश्यक है
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खाद्य पदार्थ के अपमिश्रण द्वारा जनता की स्वास्थ्यहानि को रोकने के लिए प्रत्येक देश में आवश्यक कानून बनाए गए हैं। भारत के प्रत्येक प्रदेश में शुद्ध खाद्य संबंधी आवश्यक कानून थे, किंतु भारत सरकार ने सभी प्रादेशिक कानूनों में एकरूपता लाने की आवश्यकता का अनुभव कर, देश-विदेशों में प्रचलित काननों का समुचित अध्ययन कर, सन् 1954 में खाद्य अपमिश्रण निवारक अधिनियम (प्रिवेंशन ऑव फ़ूड ऐडल्टशन ऐक्ट) समस्त देश में लागू किया और सन् 1955 में इसके अंतर्गत आवश्यक नियम बनाकर जारी किए। इस कानून द्वारा अपद्रव्यीकरण तथा झूठे नाम से खाद्यों का बेचना दंडनीय है। वैधानिक दृष्टि से निम्नलिखित दशाओं में खाद्य अपद्रव्यीकृत माना जाता है:
वह पदार्थ जिसका स्वाभाविक गुण, सारतत्व, या श्रेष्ठतास्तर ग्राहक द्वारा अपेक्षित पदार्थ से अथवा सामान्यत: बोध होने वाले पदार्थ से भिन्न हो और जिसके व्यवहार से ग्राहक के हित की हानि होती हो।
वह पदार्थ जिसमें कोई ऐसा अन्य पदार्थ मिला हो जो पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से किसी घटिया या सस्ती वस्तु में बदल दिया गया हो अथवा जिसमें से कोई ऐसा संघटक निकाल लिया गया हो जिससे उसके स्वाभाविक गुण, सारतत्व या श्रेष्ठतास्तर में अंतर हो जाए।
वह पदार्थ जो दूषित या स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो, जिसमें गंदा, पूतियुक्त, सड़ा, विघटित या रोगयुक्त प्राणिद्रव्य या वानस्पतिक वस्तु मिलाई गई हो, जिसमें कीट या कीड़े पड़ गए हों, अथवा जो मनुष्य के आहार के अनुपयुक्त हो।
वह पदार्थ जो किसी रोगी पशु से प्राप्त किया गया हो, जो विषैले या स्वास्थ्यहानिकारक संघटकयुक्त हो, या जिसका पात्र किसी दूषित या विषैले वस्तु का बना हो।
वह पदार्थ जिसमें स्वीकृत रंजक द्रव्य (कलरिंग मैटर) के अतिरिक्त कोई ऐसा अन्य रंजक मिला हो जिसमें कोई निषिद्ध रासायनिक परिरक्षी हो, अथवा स्वीकृत रंजक या परिरक्षी द्रव्य की मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक हो।
वह पदार्थ जिसकी श्रेष्ठता अथवा शुद्धता निर्धारित मानक से कम हो, अथवा उसके संघटक निर्धारित सीमा से अधिक हों।