खाद्य पदार्थों निर्धारण पद्धति योजनाओं गुजराती ढोकला
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ग्रामीण क्षेत्र की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अर्थोपार्जन के लिये कृषि अथवा कृषि सम्बन्धित उपागम पर आश्रित है। कृषि को ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। स्वतंत्रता के पश्चात सभी सरकारों ने कृषि सम्बन्धी सुधार के अनेक प्रयास किये हैं। हरितक्रान्ति के परिणामस्वरूप देश अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर तो बन गया लेकिन बढ़ती जनसंख्या और कमरतोड़ महंगाई के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति में कुछ खास सुधार नहीं हो सका।
किसानों द्वारा खेती की लागत मूल्य निकाल पाना चुनौतीपूर्ण है। प्रधानमंत्री 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के लिये कृषि क्षेत्र में आधारभूत अवसंरचना के विकास पर बल दे रहे हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष में सरकार ने किसानों की लागत मूल्य की डेढ़ गुना कीमत प्रदान करने के लिये खरीफ की फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी वृद्धि कर दी है।
वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के बावजूद देश में आज भी 40 से 50 फीसदी कृषि प्रणाली मानसून (भगवान) के भरोसे है। जिस वर्ष प्रकृति साथ देती है, उस वर्ष तो देश में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न उत्पादन होता है परन्तु प्रकृति के कुपित होने की स्थिति में खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। इसी कारण देश की कृषि अर्थव्यवस्था को मानसून आधारित जुआ कहा जाता है। कर्ज तले दबा किसान अगली फसल के लिये फिर से कर्ज लेने को मजबूर हो जाता है।
विगत वर्षों में कर्ज के जाल में उलझे अनेक किसानों ने कर्ज से मुक्ति प्राप्त करने के लिये स्वयं मौत का आलिंगन कर लिया। प्राकृतिक निर्भरता को कम करने और किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिये कृषि क्षेत्र में आधारभूत अवसंरचना के विकास पर जोर दिया जा रहा है।
सूखे के प्रकोप से बचने के लिये सिंचाई सुविधाओं के विस्तार पर बल दिया जा रहा है। वर्षाजल के संग्रहण हेतु ‘वाटरशेड परियोजना’ के अन्तर्गत बड़े पैमाने पर तालाबों का निर्माण किया जा रहा है। नदियों के जल को देश के दूसरे क्षेत्रों में ले जाने हेतु नहरों के निर्माण एवं उनकी नियमित साफ-सफाई की जा रही है। अच्छे वाटर लेवल वाले क्षेत्रों में नलकूप लगाए जा रहे हैं। नदियों के जल को संग्रहित व नियंत्रित करने और बाढ़ से बचाव के लिये बाँध व तटबंधों का निर्मण किया जा रहा है।
किसानों को समय से पर्याप्त मात्रा में उन्नत किस्म के बीज मुहैया कराने के लिये ब्लॉक स्तर पर बीज संसाधन केन्द्रों की स्थापना की गई है। मृदा भूमि परीक्षण द्वारा किसानों को ‘मृदा स्वास्थ्य प्रमाणपत्र’ उपलब्ध कराया जा रहा है जिससे किसानों को मृदा में मौजूद पोषक तत्वों की जानकारी प्राप्त हो सके और किसान भू-आवश्यकतानुरूप उर्वरकों का प्रयोग कर सकें। उर्वरकों की कमी की समस्या से निपटने के लिये भारत सरकार किसानों को पर्याप्त मात्रा में नीम कोटेड यूरिया की उपलब्धता भी सुनिश्चित कर रही है।
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