खाद्य श्रृंखला पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
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खाद्य श्रृंखला में पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न जीवों की परस्पर भोज्य निर्भरता को प्रदर्शित करते हैं। किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में कोई भी जीव भोजन के लिए सदैव किसी दूसरे जीव पर निर्भर होता है। ... इस भोज्य क्रम में पहले स्तर पर शाकाहारी जीव आते हैं जो कि पौधों पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर होते हैं।आहार के जटिल जाल को आहार श्रृंखला के द्वारा ही कोई जैविक आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है । मूलतः सभी प्राणी पेड-पौधों, कंद-मूल तथा फल-फूल पर निर्भर रहते हैं । उदाहरण के लिये लोमडी खरगोश को खाती है, परंतु खरगोश घास खाता है । इसी प्रकार एक बाज छिपकली को खाता है और छिपकली टिड्डा को खाती है जबकि घास खाता है ।
इस प्रकार सभी जीव घास, पेड़-पौधों पर निर्भर रहते हैं । इस क्रमबद्ध आहार संबंध को आहार श्रृंखला कहते हैं । एक आहार श्रृंखला का उदाहरण निम्न प्रकार से भी दिया जा सकता है । एक सूंडी/इल्ली पेड़ की पत्ती खाती है, नीली-टिट चिडिया सूंडी को खाती है और नीली टिट चिडिया को केस्ट्रल इस प्रकार का छोटा बाज पक्षी खा जाता
Explanation:
आहार श्रृंखला को लवण कच्छ पारितंत्र के उदाहरण से भी समझाया जा सकता है । लवण कच्छ पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार की फफूँदी, अलगी, शैवाल, बैक्टीरिया, कीड़े-मकौड़े तथा लघु-मछलियाँ पाई जाती हैं । इनके अतिरिक्त ऐसे दलदल में बड़ी मछलियाँ, चिडियाँ, चूहे तथा छछूँदर इत्यादि भी पाये जा सकते है ।
ऐसे स्थान पर अजैविक घटक, जल, मृदा, तथा वायु इत्यादि भी विद्यमान होते हैं । ऐसे दलदल वाले क्षेत्रों में निरंतर ऊर्जा एवं प्रकाश का संचार निरंतर होता रहता हैं । दलदलीय पारिस्थितिकी तंत्र में घास-फूस तथा पेड-पौधे प्राथमिक उत्पादक हैं ।
यह घास तथा पौधे, सूर्य प्रकाश का कार्बन-डाइ-ऑक्साइड में बदलते हैं, जिससे कार्बोहाइड्रेट उत्पन्न होते हैं तथा अंततः बायोकेमिकल मालिक्यूल में परिवर्तित हो जाते हैं, जिन पर जैविक घटक निर्भर करते हैं । इस प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं । पेड़-पौधे, जो सूर्य को प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अलग भोजन उत्पन्न करते हैं, आहार-श्रृंखला का आधार कहलाते हैं ।
प्राथमिक उत्पादक पर प्राथमिक उपभोक्ता निर्भर करते हैं । ये उपभोक्ता शाकाहारी होते हैं । प्राथमिक उपभोक्ताओं को अन्य पशु खाते हैं, जिनको द्वितीयक उपभोक्ता कहते हैं । द्वितीयक उपभोक्ताओं उल्लू, बाज इत्यादि इस वर्ग में सम्मिलित हैं ।
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आहार के जटिल जाल को आहार श्रृंखला के द्वारा ही कोई जैविक आवश्यकताओं की आपूर्ति करता है । मूलतः सभी प्राणी पेड-पौधों, कंद-मूल तथा फल-फूल पर निर्भर रहते हैं ।
Explanation:
- उदाहरण के लिये लोमडी खरगोश को खाती है, परंतु खरगोश घास खाता है । इसी प्रकार एक बाज छिपकली को खाता है और छिपकली टिड्डा को खाती है जबकि घास खाता है ।
- इस प्रकार सभी जीव घास, पेड़-पौधों पर निर्भर रहते हैं । इस क्रमबद्ध आहार संबंध को आहार श्रृंखला कहते हैं । एक आहार श्रृंखला का उदाहरण निम्न प्रकार से भी दिया जा सकता है । एक सूंडी/इल्ली पेड़ की पत्ती खाती है, नीली-टिट चिडिया सूंडी को खाती है और नीली टिट चिडिया को केस्ट्रल इस प्रकार का छोटा बाज पक्षी खा जाता है ।
- आहार श्रृंखला को लवण कच्छ पारितंत्र के उदाहरण से भी समझाया जा सकता है । लवण कच्छ पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार की फफूँदी, अलगी, शैवाल, बैक्टीरिया, कीड़े-मकौड़े तथा लघु-मछलियाँ पाई जाती हैं । इनके अतिरिक्त ऐसे दलदल में बड़ी मछलियाँ, चिडियाँ, चूहे तथा छछूँदर इत्यादि भी पाये जा सकते है ।
- ऐसे स्थान पर अजैविक घटक, जल, मृदा, तथा वायु इत्यादि भी विद्यमान होते हैं । ऐसे दलदल वाले क्षेत्रों में निरंतर ऊर्जा एवं प्रकाश का संचार निरंतर होता रहता हैं । दलदलीय पारिस्थितिकी तंत्र में घास-फूस तथा पेड-पौधे प्राथमिक उत्पादक हैं ।
- यह घास तथा पौधे, सूर्य प्रकाश का कार्बन-डाइ-ऑक्साइड में बदलते हैं, जिससे कार्बोहाइड्रेट उत्पन्न होते हैं तथा अंततः बायोकेमिकल मालिक्यूल में परिवर्तित हो जाते हैं, जिन पर जैविक घटक निर्भर करते हैं । इस प्रक्रिया को प्रकाश-संश्लेषण कहते हैं । पेड़-पौधे, जो सूर्य को प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अलग भोजन उत्पन्न करते हैं, आहार-श्रृंखला का आधार कहलाते हैं ।
- प्राथमिक उत्पादक पर प्राथमिक उपभोक्ता निर्भर करते हैं । ये उपभोक्ता शाकाहारी होते हैं । प्राथमिक उपभोक्ताओं को अन्य पशु खाते हैं, जिनको द्वितीयक उपभोक्ता कहते हैं । द्वितीयक उपभोक्ताओं उल्लू, बाज इत्यादि इस वर्ग में सम्मिलित हैं ।