Hindi, asked by nikhilyadav0010, 8 months ago

(ख) उद्धव यह मन निश्चय जानो।
मन क्रम बच मैं तुम्हें पठावत ब्रज को तुरत पलानो
पूरन ब्रह्म, सकल अविनासी ताके तुम ही ज्ञाता।
रेख, न रूप, जाति कुल नाहीं जाके नहि पितु माता
यह मत 4 गोपिन कहं आबहु बिरह नदी में भासति ।
सूर तुरत यह जाय कही तुम्ह ब्रह्म बिना नाहिं आसति​

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Answered by shishir303
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उद्धव यह मन निश्चय जानो।

मन क्रम बच मैं तुम्हें पठावत ब्रज को तुरत पलानो

पूरन ब्रह्म, सकल अविनासी ताके तुम ही ज्ञाता।

रेख, न रूप, जाति कुल नाहीं जाके नहि पितु माता

यह मत 4 गोपिन कहं आबहु बिरह नदी में भासति ।

सूर तुरत यह जाय कही तुम्ह ब्रह्म बिना नाहिं आसति​

संदर्भ ► यह पद्यांश सूरदास द्वारा रचित भ्रमरगीत सार से लिया गया है।

प्रसंग ► उद्धव श्री कृष्ण उद्धव को ब्रज जाने को कह रहे हैं और उद्धव बार-बार ब्रह्मज्ञान की रट लगा रहे हैं।

व्याख्या ► श्री कृष्ण उद्धव से कहते हैं कि हे उद्धव! तुम यह जान लो कि मैं अपने मन वचन और कर्म के साथ संपूर्ण सद्भावना का भाव लिए तुम्हें ब्रज भेज रहा हूँ। तुम तुरंत वहां जाओ और गोपियों को मेरा संदेश दो।

श्रीकृष्ण कहते हैं तुम्हारा ब्रह्म पूर्ण है, अनीश्वर है और अखंड है। तुम्हें ब्रह्म तत्व का पूर्ण ज्ञान है, लेकिन ब्रह्म तो निराकार है उसका कोई आकार नहीं। ना उसका कोई कुल है, ना कोई माता-पिता है, ना कोई उसकी रूपरेखा है। तुम अपना यह ब्रह्म ज्ञान ब्रज की गोपियों को दोगे तब ही इसका कुछ लाभ है। तुम वहां जाकर गोपियों को समझा-बुझाकर अपने ब्रह्म ज्ञान से परिचित कर आओगे तो मेरे प्रति प्रेेम में विरह की मारी उन गोपियां का कुछ हित हो सकेगा। तुम उन्हें यह समझाओ कि प्रेमभाव को त्याग कर अविनाशी ब्रह्म का ध्यान करें इसी से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

भाव ► श्रीकृष्ण को उद्धव को वहां पर भेज कर दो कार्यों के सिद्ध होने की आशा करते हैं। पहला, उन्हें तो वहां पर गोपियों के कुशल मंगल का समाचार प्राप्त हो जाएगा और दूसरा, जब ज्ञान के गर्व से चूर उद्धव जब गोपियों के प्रेम रूपी सरल मार्ग को परखेंगे तो उनका ज्ञान का दंभ चूर हो जाएगा और प्रेम के महत्व को पहचान सकेंगे।  

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