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(ख) 'ऊद्यौ इतनी कहियो जाई ।
हम आगे दोउ भैया, मैया जानि अकुलाई
याकौ बिलग बहुत हम मान्यौ, जो कहि पठ्यौधाई'
वह गुन हमको कहा बिसरिहैं, बड़े किये पय घ्याइ
अरु जब मिल्यो नंद बाबा सौ, तब कहियो समुझाई।
तौ लौ दुखी होन नहि पावै, धौरी धूमिरी गाई।
जद्यपि इंहा अनेक भांति सुख, तदपि रहगै नहि जाई
सूरदास देखौं ब्रजवासिनि, तबहि हियौं सिराई ।
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