(ख) वक्ता ने श्रोता को अकेले में जाने के लिए क्यों कहा ? उसे किस बात का भय था ?
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‘‘विजया दशमी यानी क्वार सुदी दशहरा को रावण मारा गया।’’ यह महापर्व सदियों से मनाया जाता है। हम और आप सभी पीढ़ी दर पीढ़ी विजय दशहरा का पर्व मना रहे हैं। बाल्मीकि रामायण तथा राम चरित मानस में भगवान राम का ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास प्रवास का उल्लेख मिलता है। ‘‘वर्षा और शरद ऋतु में जब राम-लक्ष्मण एक स्थान पर रहे तो क्वार में युद्ध हुआ ही नहीं होगा तो क्वार सुदी दशमी को रावण का संहार नहीं हुआ होगा।’’ इस जिज्ञासा को लेकर मैंने कई ग्रन्थ खंगाले, कहीं रावण बध की तिथि का प्रमाण नहीं मिला। पदम पुराण के पातालखंड में मेरी शंका का समाधान हुआ। ‘‘युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चैदस तक (87 दिन)’’ 15 दिन अलग अलग युद्धबंदी 72 दिन चले महासंग्राम में लंकाधिराज रावण का संहार क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र वदी चतुर्दशी को हुआ। तिथ्यंतर भ्रम नहीं है। आज हम पूर्णिमा को पूर्णमासी मानते हैं जबकि पूर्णिमा मध्यमास है जिसका संकेत 15 लिखा जाता है। अमावस्या से मास परिवर्तित होता है जिसका संकेतांक 30 लिखते हैं इस आधार पर शुक्लपक्ष पहला पखवाडा और कृष्णपक्ष दूसरा पखवाडा है। यहां हिन्दी में मैंने आज के हिसाब से महीनों के नाम लिखें है जबकि मूल ष्लोकों में अन्तर दिखाई देगा। $ $ $ रामचरित मानस हो बाल्मीकि रामायण अथवा ‘रामायण शत कोटि अपारा’ हर जगह ऋष्यमूक पर्वत पर चातुर्मास प्रवास के प्रमाण मिलते हैं। पद्मपुराण के पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में पहुंचते हैं। परिचय देकर प्रणाम करतेे है। शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले- गुरु का वचन सत्य हुआ। सारूप्य मोक्ष का समय आ गया। उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के महात्म्य का उपदेश देते हुए कहा था कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा काश्रम में आयेगा, रामानुज शत्रुघ्न से भंेट होगी। वे तुम्हें राम के पास पहुंचा देंगे। इसी के साथ ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथिवार उद्घाटित करते है- जनक पुरी में धनुषयज्ञ में राम लक्ष्मण कें साथ विश्वामित्र द्वारा पहुचना और राम द्वारा धनुषभंग कर राम- सीता विवाह का प्रसंग सुनाते हुए आरण्यक ने बताया तब विवाह राम 15 वर्ष के और सीता 06 वर्ष की थी। ईश्वरस्य धनुर्भग्नं जनकस्य गृहे स्थितम्। रामः पंचदशे वर्षे षड्वर्षामथ मैथिलीम्।। विवाहोपरांत वे 12 वर्ष अयोध्या में रहे 27 वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई मगर रानी कैकेई के वर मांगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चैदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा। उपयेमे विवाहेन रम्यां सीतामयोनिजाम्। कृतकृत्यस्तदा जातः सीतां संप्राप्य राघवः।। ततो द्वादश वर्षाणि रेमे रामस्तया सह। सप्तविंशतिमे वर्षे यौवराज्यमकल्पयत्।। वनवास में राम प्रारंभिक 3 दिन जल पीकर रहे चैथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया। पांचवें दिन वे चित्रकूट पहुंचे, वहां पूरे 12 वर्ष रहे। जानकी लक्ष्मणसखं रामं प्राव्राजयन्नृपः। त्रिरात्रमुदकाहारश्चतुर्थेऽह्नि फलाशनः।। पंचमे चित्रकूटे तु रामस्थानमकल्पयत्। 13वें वर्ष के प्रारंभ में राम लक्ष्मण और सीता के साथ पंचवटी पहुचे। जहां सुर्पनखा को कुरूप किया। अथ त्रयोदशे वर्षे पंचवट्यां महामुने। रामो विरूपयामास शूर्पणखां निशाचरीम्। वने विचरतस्तस्य जानक्या सहितस्य च।। २२ माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता का हरण किया। आगतो राक्षसस्तां तु हर्तुं पापविपाकतः। ततो माघासिताष्टम्यां मुहूर्ते वृंदसंज्ञिते।।२३ श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे। जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे, सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया। रामरामेति मां रक्ष रक्ष मां रक्षसा हृताम्। यथा श्येनः क्षुधाक्रांतः क्रंदंतीं वर्तिकां नयेत्।।२५ तथा कामवशं प्राप्तो रावणो जनकात्मजाम् नयत्येवं जनकजां जटायुः पक्षिराट्तदा।। २६ आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी कार्तिक शुक्लपक्ष में वानरों ने सीता की खोज शुरू की समुद्र तट पर कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाती नामक गिद्ध ने बताया सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी) को हनुमान ने लगाई छलांग लगाई , रात में लंका प्रवेश कर खेजवीन करने लगे। कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई। कार्तिक शुक्ल तेरस को वाटिका विध्वंश किया, उसी दिन अक्षय कुमार का बध किया। कार्तिक शुक्ल चैदस को मेघनाद ब्रह्मपाश में बांधकर दरवार में ले गये और लंकादहन किया। हनुमानजी कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया। प्रफुल्लित सभी वानरों ने नाचते गाते 5 दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया युयुधे राक्षसेंद्रेण स रावणहतोऽपतत् मार्गशुक्लनवम्यां तु वसंतीं रावणालये।।२७ संपातिर्दशमे मास आचख्यौ वानरेषु ताम्। एकादश्यां महेंद्राद्रे पुःप्लुवे शतयोजनम्।। हनूमान्निशि तस्यां तु लंकायां पर्यकालयत्। तद्रात्रिशेषे सीताया दर्शनं हि हनूमतः।।२९ द्वादश्यां शिंशपावृक्षे हनूमान्पर्यवस्थितः। तस्यां निशायां जानक्या विश्वासाय च संकथा।। अक्षादिभिस्त्रयोदश्यां ततो युद्धमवर्तत। ब्रह्मास्त्रेण चतुर्दश्यां बद्धः शक्रजिता कपिः।। वह्निना पुच्छयुक्तेन लंकाया दहनं कृतम्। पूर्णिमायां महेंद्राद्रौ पुनरागमनं कपेः ।।२ मार्गासितप्रतिपदः पंचभिः पथिवासरैः। पुनरागत्य षष्ठेऽह्नि ध्वस्तं मधुवनं किल।।३३ हनुमान की अगवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुचे। हालचाल दिये। सप्तम्यां प्रत्यभिज्ञानदानं सर्वनिवेदनं। अष्टम्युत्तरफल्गुन्यां मुहूर्ते विजयाभिधे।।३४ मध्यं प्राप्ते सहस्रांशौ प्रस्थानं राघवस्य च। रामः कृत्वा प्रतिज्ञां तु प्रयातो दक्षिणां दिशम्।। ३ अगहन ।