(ख) ये अपनी चित्रकलाओं के लिए प्रसिद्ध हैं
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भारत में केवल मूर्तिकला ही नहीं अपितु चित्रकला ने भी कई ऐतिहासिक इमारतों को उजागर किया है। हड़प्पा, सिंधु घाटी की सभ्यताओं में भी चित्रकारी का वर्णन मिलता है। इसके साथ ही अजंता की दीवारों और छत ज्वलंत चित्रकला के सबसे प्रमुख उदाहरण आज भी देखे जा सकते हैं। जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य होता गया उसकी जीवन शैली के साथ-साथ उसका कला पक्ष भी मज़बूत होता गया। जहाँ पर एक ओर मृदभांण्ड, भवन तथा अन्य उपयोगी सामानों के निर्माण में वृद्धि हुई वहीं पर दूसरी ओर आभूषण, मूर्ति कला, मुहर निर्माण, गुफ़ा चित्रकारी आदि का भी विकास होता गया। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में विकसित सैंधव सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) भारत के इतिहास के प्रारम्भिक काल में ही कला की परिपक्वता का साक्षात् प्रमाण है। खुदाई में लगभग 1,000 केन्द्रों से प्राप्त इस सभ्यता के अवशेषों में अनेक ऐसे तथ्य सामने आये हैं, जिनको देखकर बरबर ही मन यह मानने का बाध्य हो जाता है कि हमारे पूर्वज सचमुच उच्च कोटि के कलाकार थे।
भारतीय चित्रकारी के प्रारंभिक उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं, जब मानव गुफाओं की दीवारों पर चित्रकारी किया करता था। भीमबेटका की गुफाओं में की गई चित्रकारी 5500 ई.पू. से भी ज्यादा पुरानी है। 7वीं शताब्दी में अजंता और एलोरा गुफाओं की चित्रकारी भारतीय चित्रकारी का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। भारतीय चित्रकारी में भारतीय संस्कृति की भांति ही प्राचीनकाल से लेकर आज तक एक विशेष प्रकार की एकता के दर्शन होते हैं। प्राचीन व मध्यकाल के दौरान भारतीय चित्रकारी मुख्य रूप से धार्मिक भावना से प्रेरित थी, लेकिन आधुनिक काल तक आते-आते यह काफी हद तक लौकिक जीवन का निरुपण करती है। आज भारतीय चित्रकारी लोकजीवन के विषय उठाकर उन्हें मूर्त कर रही है।
भारतीय चित्रकारी को मोटे तौर पर भित्ति चित्र व लघु चित्रकारी में विभाजित किया जा सकता है। भित्ति चित्र गुफाओं की दीवारों पर की जाने वाली चित्रकारी को कहते हैं, उदाहरण के लिए अजंता की गुफाओं व एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर का नाम लिया जा सकता है। दक्षिण भारत के बादामी व सित्तानवसाल में भी भित्ति चित्रों के सुंदर उदाहरण पाये गये हैं। भारतीय चित्रकला का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। यद्यपि आधुनिक शैली की चित्रकला को अधिक पुरानी घटना नहीं माना जाता, परंतु भारत में चित्रकला के बीज तो आदिमानव ने ही डाल दिये थे। पाषाण काल में ही मानव ने गुफ़ा चित्रण करना प्रारम्भ कर दिया था, जिसके प्रमाण होशंगाबाद और भीमवेतका आदि स्थानों की कंदराओं और गुफ़ाओं में मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के दृश्य चित्रित हैं। कालांतर में राजनीतिक कारणों से भारत की चित्रकला पर ग्रीक कला का प्रभाव पड़ा। फिर आया भारतीय संस्कृति का स्वर्ण युग। इस युग की चित्रकला की सर्वोत्तम कृतियाँ हैं- अजंता के चित्र, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ आदि जिनको देखकर लोग आश्चर्यचकित रह जाते हैं। भारतीय चित्रकारी में सभ्यता के विकास के साथ परिस्थितियाँ बदलती गई। भारत धर्म और आध्यात्म की ओर आकृष्ट हुआ। यहाँ बाह्य सौंदर्य की अपेक्षा आंतरिक भावों को प्रधानता दी गई। इसलिए भारत की चित्रकला में भाव-भंगिमा, मुद्रा तथा अंगप्रत्यंगों के आकर्षण के अंदर से भावपक्ष अधिक स्पष्ट उभरकर सामने आता है।