ख) यह कागभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है-एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित। हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है। इतना ही नहीं, हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का प्रधु सन्देश इनके कर्कश स्वर में ही देना पड़ता है। दूसरी और हम कौआ और काँव-काव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं। (1) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखिका का नाम लिखिए। (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए। (iii) कागभुशुण्डि कौन-सा पक्षी है? यह विचित्र कैसे है?
Answers
Answer:
uhshwjsjz9s9sjsjsiisiauausuaauauUUu
दिए गए गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर निम्न प्रकार से दिए गए हैं।
- (1) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ और लेखिका का नाम लिखिए।
उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम है " गिल्लू " व लेखिका का नाम है महादेवी वर्मा ।
- (ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित। हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रू में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के।
व्याख्या
लेखिका कहती है कि कौवे का महत्व पितृपक्ष में बढ़ जाता है , कोई मेहमान आने वाला होता है तो उसकी सूचना भी कौव्वा ही देता है इसलिए यह समादरित व अति सम्मानित है।
उसकी आवाज़ कर्कश होती है व कांव कांव लोगो को पसंद नहीं आती इस कारण अपमानित भी है।
- (iii) कागभुशुण्डि कौन-सा पक्षी है?
काकभुशुंडी एक विचित्र पक्षी है। वह एक शिवभक्त था परन्तु अहंकारी भी था, विष्णुजी व अन्य भक्तो की निन्दा किया करता था उसे भगवान शंकर ने पहले सर्प होने का श्राप देकर 1000 जन्म लेने का श्राप दिया ।
उसका अंतिम जन्म एक ब्राह्मण के रूप में हुआ , वह दीक्षा लेने लोमश ऋषि के पास गया, वह ऋषि के साथ बहुत तर्क वितरक किया करता था जिसके कारण लोमश ऋषि ने उसे कौव्वे का शरीर प्राप्त होने का श्राप दिया। ऋषि को श्राप देने के बाद पछतावा हुआ तथा उन्होंने काक को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया व रामभक्ति का मंत्र दिया, रामभक्ति का मंत्र कौवे के शरीर में प्राप्त होने के कारण उस कौवे के शरीर से प्रेम हो गया व वह उसी में रहने लगा।