Khan pan ki nai Sanskriti ka sthaniye Vyanjan par kya Prabhav pada hai
please answer in hindi
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खानपान की मिश्रित संस्कृति से लेखक का तात्पर्य सभी प्रदेशों के खान-पान के मिश्रित रूप से है। यहाँ पर लेखक यह कहना चाहते हैं कि आज एक ही घर में हमें कई प्रान्तों के खाने देखने के लिए मिल जाते हैं। लोगों ने उद्योग धंधों, नौकरियों व तबादलों व अपनी पसंद के आधार पर एक दूसरे प्रांत की खाने की चीज़ों को अपने भोज्य पदार्थों में शामिल किया है।
मेरा घर कोलकत्ता में है। मैं बंगाली परिवार से हूँ। हमारा मुख्य भोजन चावल और मछली है, लेकिन हमारे घर में चावल और मछली के अलावा दक्षिण भारतीय व्यंजन इडली, सांभर, डोसा आदि और पाश्चात्य भोजन बर्गर व नूडल्स भी पसंद किए जाते हैं। यहाँ तक कि हम बाज़ार से न लाकर इन्हें अपने ही घर में बनाते हैं।
खानपान में बदलाव से निम्न फायदे हैं –
1.भिन्न प्रदेशों की संस्कृतियों को जानने और समझने का मौका मिलना।
2. राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलना।
3. अलग-अलग प्रकार के भोजन खाने में मिलने के कारण खाने में रूचि बने रहना।
4. देश-विदेश के व्यंजन मालूम होना।
5. गृहिणियों व कामकाजी महिलाओं को जल्दी तैयार होनेवाले विविध व्यंजनों की विधियाँ उपलब्ध होना।
6. स्वाद, स्वास्थ्य व सरसता के आधार पर भोजन का चयन कर पाना।
7. समय की बचत होना।
खानपान में बदलाव आने से होनेवाले फायदों के बावजूद लेखक इस बदलाव को लेकर चिंतित है क्योंकि उसका मानना है कि आज खानपान की मिश्रित संस्कृति को अपनाने से नुकसान भी हो रहे हैं जो निम्न रूप से हैं –
1. स्थानीय व्यंजनों का चलन कम होता जा रहा है जिससे नई पीढ़ी स्थानीय व्यंजनों के बारे में जानती ही नहीं है।
2. खाद्य पदार्थों में शुद्धता की कमी होती जा रही है।
3. कुछ व्यंजनों का स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित न होना।
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