खनिजों को परिभाषित करें। भारत में भविष्य की ऊर्जा मांगों के लिए ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों की भूमिका की किन्हीं चार बिन्दुओं के आधार पर गंभीर रूप से जांच करें।
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ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों मुख्यतः जीवाश्म ईंधन की खोज ने मानव इतिहास के विकास को एक नई दिशा दी। उल्लेखनीय है कि जीवाश्म ईंधन में कई सौ वर्षों तक पूरी दुनिया की ऊर्जा मांगों को पूरा करने की क्षमता है। इसने बीसवीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रांति में भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। परंतु दुनिया भर में इसकी अत्यधिक खपत ने कई चुनौतियों को भी जन्म दिया जिसके कारण दुनिया इसके प्रतिस्थापन के बारे में सोचने को मजबूर हो गई। 1970 के दशक में पर्यावरणविदों ने जीवाश्म ईंधन से हमारी निर्भरता को कम करने और उसके प्रतिस्थापन के रूप में नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना शुरू किया। 21वीं सदी की शुरुआत में दुनिया की ऊर्जा खपत का 20 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त होने लगा था। ध्यातव्य है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने भी अपनी बिजली उत्पादन क्षमता का काफी विस्तार किया है। विगत तीन वर्षों में नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा में लगभग 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
क्या होती है नवीकरणीय ऊर्जा?
यह ऐसी ऊर्जा है जो प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करती है। इसमें सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, पवन, ज्वार, जल और बायोमास के विभिन्न प्रकारों को शामिल किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि यह कभी भी समाप्त नहीं हो सकती है और इसे लगातार नवीनीकृत किया जाता है।
नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों (जो कि दुनिया के काफी सीमित क्षेत्र में मौजूद हैं) की अपेक्षा काफी विस्तृत भू-भाग में फैले हुए हैं और ये सभी देशों को काफी आसानी हो उपलब्ध हो सकते हैं।
ये न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं बल्कि इनके साथ कई प्रकार के आर्थिक लाभ भी जुड़े होते हैं।
इसमें निम्नलिखित को शामिल किया जाता है:
वायु ऊर्जा
सौर ऊर्जा
हाइड्रोपावर
बायोमास
जियोथर्मल
नवीकरणीय ऊर्जा का महत्त्व
नवीकरणीय ऊर्जा पर्यावरण के अनुकूल है
यह ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत है, अर्थात् इसमें न्यूनतम या शून्य कार्बन और ग्रीनहाउस उत्सर्जन होता है। जबकि इसके विपरीत जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैस और कार्बन डाइऑक्साइड का काफी अधिक उत्सर्जन करते हैं, जो कि ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन और वायु की गुणवत्ता में गिरावट के लिये काफी हद तक ज़िम्मेदार हैं। इसके अतिरिक्त जीवाश्म ईंधन वायुमंडल में सल्फर का भी उत्सर्जन करते हैं जिसके प्रभाव से अम्लीय वर्षा होती है। नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को काफी कम करता है।
ऊर्जा का स्थायी स्रोत
नवीकरणीय संसाधनों से प्राप्त ऊर्जा को ऊर्जा का स्थायी स्रोत माना जाता है, इसका तात्पर्य यह है कि वे कभी भी समाप्त नहीं होते हैं या कह सकते हैं कि उनके खत्म होने की संभावना लगभग शून्य होती है। वहीं दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस और कोयला) जैसे ऊर्जा के स्रोतों को सीमित संसाधन माना जाता है और इस बात की प्रबल संभावना होती है कि वे भविष्य में समाप्त हो जाएंगे।
रोज़गार सृजन में सहायक
नवीकरणीय ऊर्जा अन्य परंपरागत विकल्पों की अपेक्षा एक बेहतर और सस्ता स्रोत है। ध्यातव्य है कि जैसे-जैसे विश्व में नवीकरणीय ऊर्जा का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, नए और स्थायी रोज़गारों का भी निर्माण होता जा रहा है। उदाहरण के लिये जर्मनी और ब्रिटेन जैसे देशों में नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग को प्रोत्साहन देने के लिये कई नए रोज़गारों का सृजन हुआ है।
वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की कीमतों में स्थिरता
नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन दिये जाने से दुनिया के कई देशों में इसका काफी बढ़ चढ़ कर प्रयोग हो रहा है जिसके कारण वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की कीमतों में काफी स्थिरता आई है।
सार्वजानिक स्वास्थ्य को बढ़ावा
कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि नवीकरणीय ऊर्जा और लोगों के स्वास्थ्य में सीधा संबंध होता है और सरकारें ऊर्जा के नवीकरणीय संसाधनों पर जो भी निवेश करती हैं उसका स्पष्ट प्रभाव आम लोगों के स्वास्थ्य स्तर में देखने को मिलता है। ध्यातव्य है कि जीवाश्म ईंधन द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस, कार्बन और सल्फर आदि मानव स्वास्थ्य के लिये काफी हानिकारक होते हैं।
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