Hindi, asked by dhruwnetram3, 1 month ago

खण्ड-'क'
प्रश्न-1
(in सरकारों को क्या प्रया
अधोलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पड़कर इन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर
लिखिए :
(a) हमारा देश किन संस्कृ
(1) यूनेस्को कौन-सा मूल्य
(11) गद्यांश का उचित शोष
(vii) मूल शब्द और प्रत्यय
बर्बरता, मानवीय
प्रश्न-2
अधोलिखित अपठित काव्यांश
आज हमें विनम्रता की भावना को आवश्यकता है। हमें यह रुख त्याग देना
चाहिए कि हम ठीक हैं और हमारे विरोधी गलत हैं या यह कि हम जानते हैं कि हम
पूर्ण नहीं हैं परन्तु निश्चित रूप से अपने शत्रुओं से अच्छे हैं। वर्षों से सामूहिक वध
देखते-देखते हम निष्ठुर हो गए हैं और भयानकताओं को देख-देखकर कठोर हो गए
हैं। बहुत उन्नत राष्ट्रों में बड़ी मात्रा में बर्बरता है और बहुत पिछड़ी हुई जातियों में भी
सभ्यता का काफी बड़ा अंश है। एक जमाने में सभ्यताएँ बाहर से बर्बरों द्वारा नष्ट कर दी
गई थी, मगर हमारे समय में इस बात की संभावना है कि वे अंदर से उन बर्बरों द्वारा नष्ट
कर दी जाएंगी जिन्हें हम पैदा कर रहे हैं। प्रौद्योगिकीय क्रांति के समतुल्य एक नैतिक
क्रांति करनी पड़ेगी। हमें नूतन मानवीय सम्बन्धों का विकास करना ही पड़ेगा और राष्ट्रों
की बौद्धिक संघटना तथा नैतिक ऐक्य को प्रोत्साहित करना ही होगा। सरकारों को भी
एक हृदय, एक अंत:करण, एक भावना-कि हम सब जाति और वर्ग के बंधनों से परे
एकही बिरादरी के सदस्य हैं-का विकास करना चाहिए।
लिखिए :
क्या रोकेंगे प्रलय मेष
मुझेनसाथी रोक सकें
मैं अविराम पथिक अल
शूलों के बदले फूलों का
मैं विपदाओं में
मुसकात
फिर मुझको क्या रोक
मैं अटका कब विचलित
रोक सको पगले कदम
आँधी हो. ओले-वर्षा ही
यदि विश्व निष्टा की भावना बढ़ानी है, तो हमें जीवन को दूसरी परम्पराओं से
गुण ग्रहण की वृत्ति पैदा करनी होगी। यह देश बहुत दिनों से अनेक संस्कृतियों-आर्य,
द्रविड़, हिंदू, बौद्ध, यहूदी, पारसी, मुसलमानी और खिष्टीय का मिलन स्थल है। आज
जब संसार सिकुड़ता जा रहा है, तो सभी जाति एवं संस्कृतियों के इतिहास हमारे अध्ययन
के विषय बनने चाहिए। यदि हम एक-दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह जानना चाहते हैं, तो
हमें अपने अलगाव की वृत्ति और बड़प्पन की भावना छोड़ देनी चाहिए और मान लेनी
चाहिए कि दूसरी संस्कृतियों के दृष्टिकोण भी उतने ही उचित हैं और उनका प्रभाव भी
उतना ही शक्तिमान है, जितना हमारा है। मानव जाति के इतिहास के इस संकटकाल में
हमें मानवीय प्रकृति को पुनः नूतन ढंग पर गठित करने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध
में प्राचा-पाश्चात्य अवबोध के लिए यूनेस्को' जो मूल्यवान कार्य कर रहा है, उसकी
फिर मुझको क्या डरास
मुझे डरा पाए कब अंध
मुझे पथिक कब रोक सा
बढ़ता अविराम निरंतर
फिर मुझको क्या डरा सत्र
(0 कवि ने किसको प्रकृति​

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Answered by anitajoshi197720
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