खरचै नहि कोई चोर न लेये, दिन-दिन बढत सवायो |इस पंक्ति का भाव स्पष्ट किजिए |
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न तो खर्च किया जा सकता है,न चोर चुरा सकता है
ज्ञान केवल दिन पर दिन बढ़ता ही जाता है।
खरचै नहि कोई चोर न लेये, दिन-दिन बढत सवायो। इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
यह पंक्तियां 'मीराबाई' द्वारा रचित की गई हैं। मीराबाई द्वारा रचित 'राम रतन धन पायो' नामक पद की इन पंक्तियों का भाव यह है कि मीराबाई भक्ति रूपी धन का गुणगान करती हुई कहती हैं कि भक्ति रूपी धन एक ऐसा धन होता है, जिससे जितना खर्च करो, यह वह उतना ही अधिक बढ़ता जाता है। यह धन ऐसा धन है जिसे कोई चोर नहीं चुरा सकता।
भक्ति रूपी धन के खर्च होने का भी डर नहीं होता और ना ही किसी चोर द्वारा चुराए जाने का डर होता है।
मीराबाई श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति भाव को प्रकट करते हुए ऐसा कह रही हैं।
#SPJ2
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'मीरा ने प्रेम के मिलन और विरह दोनों पक्षों की सुंदर अभिव्यक्ति की है।' इस कथन को स्पष्ट हुए अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
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जगत देखि रोयी का क्या भाव है-
(A) जगतराम को देख कर रोने लगना
(B) संसार की बनावट को देखकर रोना
(C) संसार में प्राणियों को मोह-माया में लिप्त देखकर दुखी होना
(D) संसार की चाल देखकर रोना।
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