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बालक एक कच्ची मिट्टी की तरह है । उसका निर्माण उसके चारा और का परिवेश करता है।
प्राकतिक सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक पारिवारिक एव स्कुला वातावरण के सनदभॅ में उदाहरण देकर एक संक्षिप्त प्रस्ताव लिखिए। please answer fast i will mark brainlist please please
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कच्ची मिट्टी के समान होता है बालक का मस्तिष्क: शर्मा
स्वामीजी महाराज काॅलेज में हुई राष्ट्रीय कार्यशाला भास्कर संवाददाता | दतिया बालक का मस्तिष्क इस स्तर पर...

Bhaskar News Network
Oct 27, 2017, 02:25 AM IST
स्वामीजी महाराज काॅलेज में हुई राष्ट्रीय कार्यशाला
भास्कर संवाददाता | दतिया
बालक का मस्तिष्क इस स्तर पर कच्ची मिट्टी के समान होता है जिसको हम जो आकार देना चाहें आसानी से प्रदान कर सकते हैं। अर्थात जिस प्रत्यय को हम सीखना चाहते हैं वह आसानी से और दीर्घ समय तक उसको धारण करने में सक्षम होता है। बालकों की शिक्षण अभिक्षमता को विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण कि आवश्यकता होती है। अधिगम प्रक्रिया को क्रिया आधारित करने की आवश्यकता है जिससे सीखने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके। यह बात उनाव रोड स्थित श्री स्वामी जी महाराज कॉलेज ऑफ एजुकेशन एंड साइंसेस में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन अवसर पर रायपुर के गुरुघासीदास विश्वविद्यालय डॉ. भास्कर शर्मा ने बतौर मुख्य वक्ता संबोधित करते हुए कही।
विद्यालय स्तर पर नवाचार शिक्षण तकनीकी का प्रयोग विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में डाॅ. शर्मा ने कहा कि बच्चों को बच्चों को कलर वेस्ड एक्टीविटी के माध्यम से रंगों की पहचान, लेंग्वेज गेम के माध्यम से भाषा की समझ, क्ले माॅडलिंग एक्टीविटी के माध्यम से आकार एवं वस्तु प्रत्यय की समझ को विकसित किया जा सकता है। पजल्स गेम के माध्यम से तर्क शक्ति का विकास, वुड ब्लॉक बेस्ड एक्टीविटी के माध्यम से संरचना एवं तर्क शक्ति का विकास, फ्लोर पाउडर बेस्ड एक्टीविटी के माध्यम से कठिन प्रत्ययों की संरचना की समझ उत्पन्न की जा सकती हैं। शिक्षण में नवाचारों का प्रयोग वर्तमान समय की प्रासंगिकता हैं। मुख्य वक्ता उप्र खुर्जा पीजी कालेज डाॅ शेखर शर्मा ने उच्च प्राथमिक स्तर के बालकों के शिक्षण के संदर्भ में बताया कि इस आयु वर्ग के बालकों में असीम उर्जा का उदगार होता है जिसको हम सकारात्मक दिशा प्रदान कर सकते हैं।
इसके लिए योग शिक्षा को अनिवार्य करने की आवश्यकता है । डायरेक्टर डाॅ. ऋचा मुदगल ने कहा कि प्रभावी शिक्षण के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षक नवीन शिक्षण अधिगम विधियों से अवगत हों एवं उनको व्यवहार में परिमार्जित करें। तकनीकी का प्रयोग करते हुए अधिगम प्रक्रिया का सरल एवं बोधगम्य बनाने की आवश्यकता है।