खड़क सिंह ने घोड़े पर बैठने के लिए क्या बहाना बनाया था
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सुबह जब बाबा भारती अपने अस्तबल में गए, तो उनका घोड़ा ‘सुल्तान’ हिनहिना रहा था। उन्हें यक़ीन न आया। किंतु यह सच था। डाक़ू खड्ग सिंह की आत्मा ने उसे धिक्कारा और वह रात को ही घोड़ा चुपचाप वापस बाबा के अस्तबल में बाँध आया। लेकिन दिल्ली के अस्तबल से सुल्तान ऐसे गायब हुआ कि दोबारा फिर अभी तक वापस लौटकर नहीं आया।
हार की जीत नामक इस कहानी के लेख सुदर्शन ने बाबा भारती के घोड़े सुल्तान और बाबा भारती के रिश्ते को कुछ इस तरह से बताया था- “माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था।”
दिल्ली की राजनीति ने बाबा भारती और डाकू खड्ग सिंह की कहानी को एक बार फिर प्रासंगिक कर दिया है। यह बताना शायद आवश्यक नहीं है कि दिल्ली की राजनीति में डाकू खड्ग सिंह और बाबा भारती कौन है।
सुल्तान को पाने के लिए एक दिन शाम को खडग सिंह अपाहिज का वेश धारण उसी रास्ते में बैठकर जिधर से बाबा भारती सुल्तान की सवारी बनकर शहर की aur जा रहे थे मैं पर एक अपाहिज को कहा था सुनकर बाबा भारती को दया आ गयी उन्होंने उससे पूछा तो पता चला कि वह पास के ही एक गांव में जाने चाहता है अपने स्वभाव के चलते बाबा ने उसकी मदद करनी चाहिए वह स्वयं गोरे से उतर गए और अपाहिज को घोड़े पर सवार करवाया था उन्होंने एक झटका सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई उन्होंने पलटकर देखा कि खड़क सिंह सेन घोड़े पर सवार है वह आश्चर्य और सुल्तान उनके हाथ से चला गया l
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