Khelo me ubharta bharat lekhan in hindi
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भूमिका – पिछले हजार वर्षों का गुलाम भारत अगर हँस-खेल न पाया हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए | परतंत्र भारत में खेलों का विकास नहीं पाया | हमारे खिलाडियों को विश्वस्तरीय सुविधाएँ ही नहीं सामान्य सुविधाएँ भी नहीं मिल सकीं | आज़ादी के बाद भारत को गरीबी, जनसंख्या, निरक्षरता आदि बीमारयों ने एसा घेरा कि वह खेल-कूद की और पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाया | यही कारण है कि अरबों की आबादी होने के बावजूद भारत के खिलाड़ी विश्व-खेलों में धाक नहीं जमा पाए |
अलोंपिक में भारत का इतिहास – भारत ने अधिकारिक रूप से 1920 के अलोंपिक खेलों में पहली बार भाग लिया था | 1928 के अलोंपिक में हमने हॉकी में स्वर्ण पदक प्राप्त किया | उसके बाद 1932, 1936, 1948, 1952, 1956, 1964 और 1980 के अलोंपिक में हॉकी में वह दबदबा कायम रहा | एक ही खेल में आठ स्वर्णपदक पाकर एक प्रकार से हॉकी का नाम भारत के साथ जुड़ गया | भारत के कप्तान ध्यान चाँद को हॉकी का जादूगर कहा गया | 1980 के बाद एस खेल पर काले बदल छाने लगे | 2008 के चीन अलोंपिक में तो भारतीय हॉकी टीम क्वालीफाई ही नहीं कर पाई | हॉकी के नाम पर कहने को यह गौरव हमारे पास रहा कि भारतीय अंपायर सतेन्द्र सिंह को लगतार दूसरी बार अलोंपिक खेलों में अंपायर होने का अवसर मिला |
व्यक्तिगत पदक – व्यक्तिगत खेलों में पदक प्राप्त करने की कोई सुदीर्घ परंपरा भारत की झोली में नहीं है | सन 1952 में पहली बार के.डी. जाधव ने हेलसिंकी अलोंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक प्राप्त किया था | उसके बाद हमारे पहलवान विजय के पायदान पर चढ़ने के लिए 56 साल लंबी प्रतीक्षा करते रहे | 2008 के बीजिंग अलोंपिक में दिल्ली के सुशिल कुमार ने फ्री-स्टाइल कुश्ती के 66 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक प्राप्त किया | उन्होंने रेपचेज की सुभिदा का लाभ उठाते हुए बोलारुस, अमेरिका और कजाख्स्तान के पहलवानों को हराकर यह पदक भारत के नाम किया |
भारत को टेनिस का एकमत्र कांस्य पदक 1996 के अलोंपिक में प्राप्त हुआ था | भारोतोलन में भी भारत ने एकलौता कांस्य पदक प्राप्त किया है | यह पदक 2000 के अलोंपिक खेलों में हरियाणा के ही मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने 75 किलोग्राम वर्ग में सेमी फाइनल में जगी बनाई तथा क्यूबाई मुक्केबाज से संघर्ष करते हुए रजत पदक प्राप्त किया |
निशानेबाजी का खेल पिछले दो अलोंपिक में भारत के लिए फलदायी सिद्ध हुआ है | 2004 के अलोंपिक में राजस्थान के राज्यवर्द्धन सिंह राठौर ने डबल ट्रैप निशानेबाजी में रजत पदक प्राप्त किया था | इस बार पंजाब के अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा में स्वर्णपदक प्राप्त करके भारत के लिए नया इतिहास रच दिया है | वे एकल स्पर्द्धामें पहला स्वर्णपदक जीतने वाले पहले और अकेले यशस्वी निशानेबाज खिलाड़ी हो गए हैं | उन्होंने निराशा में डूबे भारत के लिए आशा की किरण जगाई है | भारत भी विश्व-खेलों में पाँव जमा सकता है, इसका विश्वास उन्होंने जग दिया है | आशा है, भारत के उभरते हुए खिलाड़ी इस परंपरा को और अधिक बाढाएँगे |
निष्कर्ष – यह सच है कि भारत जैसे निशल देश के लिए दो-तीन पदक ऊँट के मुँह में जीरा भी नहीं है | इस बार 12 खेलों के लिए 56 खिलाड़ियों का एक दल बीजिंग अलोंपिक में गया था | उसमें से एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक हुआ है | यस परिणाम बहुत आशाजनक न होते हुए भी पिछले सालों की तुलना में प्रेरणादायी है |
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उत्तर:
खेलों में भारतीय खिलाड़ी तेजी से उभर रहे हैं। जहां पहले भारत कई बार ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाया, वहीं अब भारतीय खिलाड़ी बेहतरीन प्रदर्शन करके भिन्न-भिन्न खेलों में पदक ला रहे हैं।
व्याख्या:
- अंग्रेजों के समय से ही भारत में खेलों का प्रारंभ हो गया था सन 1920 ई. में भारत में सबसे पहले ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। आज़ादी के बाद भारत सरकार ने अन्य क्षेत्रों को विकसित करने के साथ-साथ खेलों को भी बढ़ावा देना शुरू किया। भारत में क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल, बैडमिंटन, टेनिस आदि प्रमुख खेल खेले जाते रहे हैं।
- वर्तमान में हम देखें तो फेंसिंग, कुश्ती, वेटलिफ्टिंग, कबड्डी, टेबल टेनिस, गोल्फ आदि खेल भी लोकप्रिय हो रहे हैं। भारतीय खिलाड़ी धीरे-धीरे विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं।
- इस प्रकार हम कह सकते हैं कि खेलों में भारतीयों ने अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी है, परंतु अभी भी खेलों और खिलाड़ियों को सरकारी सहायता की पर्याप्त आवश्यकता है।
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