'Khinch gai gandh ki lakir si' dwara kavi kya kehena chaha rha hai
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.....I didn't understand
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उन रंग-बिछी सुंदर क्यारी मै एक कोने के अंदर छुपे हुए फूलो की गंध जब उस कवि तक पहुॅंची । तो वह सुगंध उसके प्राणों तक जा पहुँची । कवि उस गंध को अपने प्राणों के अंदर महसूस कर रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे मानो वो गंध उसके नथ से लेकर प्राणों तक एक लकीर-सी खिंच के सिमित हुई हो।
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