Hindi, asked by mohandasthawrani50, 3 months ago

kisan andolan ka nibandh short nibandh ​

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Answered by Anonymous
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Answer:

आंदोलनकारी किसान संगठन केंद्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं और इनकी जगह किसानों के साथ बातचीत कर नए कानून लाने को कह रहे हैं. उन्हें आंशका है कि लाए गए नए कानूनों कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा.

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Answered by Divyani027
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1. प्रस्तावना:

भारत एक कृषि प्रधान देश है । यहां की अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि ही है । कृषि कर्म ही जिनके जीवन का आधार हो, वह है कृषक । कृषि प्रधान देश होने के कारण हमारे देश की अर्थव्यवस्था का लगभग समूचा भार भारतीय किसान के कन्धों पर ही है ।

चूंकि हमारे देश की अधिकांश जनता गांवों में निवास करती है, अत: भारतीय किसान ग्रामीण वातावरण में ही रहकर विषमताओं से जूझते हुए अपने कर्म में नि:स्वार्थ भाव से लगा रहता है । इस अर्थ में भारतीय किसान का समूचा जीवन उसके अपूर्व त्याग, तपस्या, परिश्रम, ईमानदारी, लगन व कर्तव्यनिष्ठा की अद्‌भुत मिसाल है।

2. भारतीय किसान की स्थिति एवं महत्त्व:

भारतीय किसान धरती माता का सच्चा सपूत है । वह ऋषि-मुनियों, सन्त-महात्माओं के जीवन के उच्चादर्शो के काफी निकट है; क्योंकि वह भीषण गरमी में गम्भीर आघातों को सहकर, कड़ाके की ठण्ड में और बरसते हुए पानी में रहकर अपने कर्म में बड़ी ही ईमानदारी एवं तत्परता से लगा रहता है ।

धरती के समूचे प्राणियों के जीवन के लिए अन्न उपजाने वाला भारतीय किसान इतना परोपकारी एवं मेहनती है कि वह अपने स्वार्थ व सुख की तनिक भी चिन्ता नहीं करता । उसका जीवन अत्यन्त सीधा-सादा है । शरीर पर धोती, अंगरखा, गमछा और नंगे पैर रहकर भी दूसरों के लिए अन्न उपजाना ही उसका ध्येय है । प्रात: काल सूरज के उगने के साथ सायंकाल सूरज के डूबने तक खेतों में काम करना ही उसके जीवन की साधना है । घर पर अपने पशुओं की सेवा करने में भी वह जरा सी भी सुस्ती नहीं करता । जहां तक भारतीय किसान की स्थिति है, वह अत्यन्त दयनीय है । 50 प्रतिशत से अधिक भारतीय किसान जमींदारों, पूंजीपतियों, साहूकारों के आर्थिक शोषण का शिकार है ।

ऋणग्रस्तता ने उन्हें गरीबी के मुंह में धकेल दिया है । जमींदारों के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ उसका जीवन कभी अकाल, तो कभी महामारी तो कभी बाढ़ या सूखे की चपेट में आ जाता है । ऐसी स्थिति में उसे असमय ही मृत्यु वरण करने को विवश होना पड़ता है । कई बार तो उन्हें सपरिवार सामूहिक रूप में भीषण गरीबी से जूझते हुए आत्महत्या भी करनी पड़ जाती है ।

कर्ज के बोझ तले दबा उसका जीवन किसी बंधुआ मजूदर के जीवन से कुछ कम नहीं होता । सच कहा जाये, तो वह कर्ज में ही पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है । उसके बैलों की प्यारी जोड़ी भी उसके हल के साथ बिक जाती है ।

अथक परिश्रम से तैयार की गयी फसल खलिहान तक पहुंचने से पहले साहूकार, जमींदार के हाथों में पहुंच जाती है । उसकी इस आर्थिक अभावग्रस्त पीड़ा की व्यथा-कथा को वही समझ सकता है ।

भारतीय किसान का जीवन तो करुणा का महासागर है । स्वयं अन्न उपजाने के बाद भी उसे तथा उसके परिवार को भरपेट खाने को अन्न नहीं मिलता । किसान के लिए कृषि एक जुआ है । प्रकृति पर निर्भरता उसके जीवन की जटिल समस्या है ।

सिंचाई के साधनों के अभाव में उसे पूरी तरह से मानसून पर निर्भर रहना पड़ता है । अशिक्षा एवं गरीबी के कारण वह कृषि के परम्परागत साधनों को अपनाने के लिए मजबूर हो जाता है ।

आज के वैज्ञानिक युग के अनुरूप वह कृषि को वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार व्यावहारिक रूप से अपनाने में स्वयं को असमर्थ पाता है । सरकारी नीतियां और योजनाएं उसके लिए लाभकारी होते हुए भी प्रभावी सिद्ध नहीं होती हैं । वर्तमान व्यवस्था भी कम दोषपूर्ण नहीं है, जिसमें भ्रष्टाचार का बोलबाला है ।

बिचौलिये और दलाल उसे कहीं का नहीं छोड़ते । सामाजिक रूढ़ियां एवं उसकी स्वयं की संकीर्ण विचारधारा भी उसके सुविधासम्पन्न जीवन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है । वह कृषि के नये-नये वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग करने में स्वयं को असमर्थ पाता है । शिक्षा एवं गरीबी के कारण उसका स्वारथ्य भी कुप्रभावित हो जाता है, जिसकी वजह से उसकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती ।

कृषकों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अपनी बहुत-सी नीतियों एवं योजनाओं में भारतीय किसानों को प्राथमिकताएं प्रदान की है । वर्षा पर उसकी निर्भरता को कम करने के लिए सरकार द्वारा विशालकाय तालाब, कुएं, नलकूप एवं नहरों का निर्माण किया गया, जिसके सुचारु संचालन के लिए जो बिजली खपत की जाती है, सरकार उसे अत्यन्त कम दर पर प्रदान करती है ।

सरकारी योजनाओं में किसानों के लिए उनके माल के उचित भण्डारण हेतु व्यवस्थित स्थान दिलाना, उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाना आदि शामिल हैं । भूमिहीन किसान, जो जमींदारों, साहूकारों के शोषण का शिकार हो रहे हैं, सरकार उन्हें इस प्रकार के शोषण से मुक्त करने हेतु पंचायती राज्य सम्बन्धी योजनाएं बना रही है । उनके शोषण के विरुद्ध कानून बनाये जाने की प्रक्रिया भी निरन्तर चल रही है । उनके रहन-सहन के स्तर को सुधारने हेतु भी कई ग्रामीण योजनाओं की व्यवस्था पंचायती राज में की गयी है ।

3. उपसंहार:

यह बात निःसन्देह रूप से सच है कि भारतीय किसान एक मेहनतकश किसान है । प्रकृति तथा परिस्थितियों की विषमताओं से जूझने की अच्छी क्षमता उसमें विद्यमान है । आधुनिकतम वैज्ञानिक साधनों को अपनाकर वह खेती करने के अनेक तरीके सीख रहा है ।

पहले की तुलना में वह अब अधिक अन्न उत्पादन करने लगा है । शिक्षा के माध्यम से उसमें काफी जागरूकता आ गयी है । वह अपने अधिकारों के प्रति काफी सजग होने लगा है । कुछ परिस्थितियों को छोड़कर अधिकांश स्थितियों में वह कृषि पर आधारित अपनी जीवनशैली में भी बदलाव ला रहा है । उसका परिवार भी अब शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं को प्राप्त कर रहा है ।

देश की प्रगति एवं विकास में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निबाहने वाला भारतीय किसान अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार स्तम्भ है । उसकी मेहनतकश जिन्दगी को सारा देश नमन करता है । सच कहा जाये, तो भारतीय किसान एक महान् किसान है, महान् इंसान है ।

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