Kisan ki Bahu ko Lakshmi thi yagya Pati ka time kyon kahan gaya Uttar dijiye
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(क )
प्रस्तुत पंक्तियां वे आंखें कविता में किसान के उजड़े हुए घर का वर्णन करने के लिए सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी गई है इन पंक्तियों में किसान की वेदना तो है ही साथ ही समाज और परिवार में स्त्री के प्रति बुरी भावना का भी परिचय मिलता है -कवि स्त्री की दयनीय स्थिति से पाठक को अवगत करवाना चाहता है
विपरीत परिस्थितियों में अनेक आर्थिक संकटों के चलते किसान ने अपनी पत्नी पुत्र पुत्री बैलों की जोड़ी आदि को खो चुका है अब उसके घर में केवल उसके मृत पुत्र की विधवा बहू बची है परिवार की उजड़ी हुई दशा को सहन कर पाना बड़ा ही कठिन है किसान अपनी बहू को घर में लक्ष्मी के रूप में लाया था परंतु अब वह उसे पति का घात करने वाली मानता है ग्रामीण कृषक संस्कृति और समाज में स्त्री से पूर्व उसके पति की मृत्यु का हो जाना अच्छा नहीं माना जाता और इस मृत्यु का दोषारोपण स्त्री पर ही किया जाता है यही कारण है कि वह अपनी पुत्रवधू को प्रतिघातिन मानता है इसी बात का परिचय देते हुए पंत जी ने सामाजिक स्थिति का परिचय देने का प्रयास किया है पाठक के समक्ष एक सामाजिक चित्र खींचा है