kisano ke samne aane wali samasyo par jankari likho
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स्वतंत्र भारत से पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात् एक लम्बी अवधि बीतने के बाद भी भारतीय किसानों की दशा में सिर्फ 19-20 का ही अंतर दिखाई देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। कृषि प्रधान राष्ट्र भारत में लगभग सभी राजनीतिक दलों का कृषि के विकास और किसान के कल्याण के प्रति ढुलमुल रवैया ही रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था। बावजूद इसके किसानों की समस्याओं पर ओछी राजनीति करने वाले ज्यादा और उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने वाले कम हैं।
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स्वतंत्र भारत से पूर्व और स्वतंत्र भारत के पश्चात् एक लम्बी अवधि बीतने के बाद भी भारतीय किसानों की दशा में सिर्फ 19-20 का ही अंतर दिखाई देता है। जिन अच्छे किसानों की बात की जाती है, उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण के कारण कृषि योग्य क्षेत्रफल में निरंतर गिरावट आई है। कृषि प्रधान राष्ट्र भारत में लगभग सभी राजनीतिक दलों का कृषि के विकास और किसान के कल्याण के प्रति ढुलमुल रवैया ही रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किसानों को भारत की आत्मा कहा था। बावजूद इसके किसानों की समस्याओं पर ओछी राजनीति करने वाले ज्यादा और उनकी समस्याओं की तरफ ध्यान देने वाले कम हैं।
चुनावी मौसम में विभिन्न राजनीतिक दलों की जुबान से किसानों के लिए हितकारी बातें अन्य मुद्दों के समक्ष ओझल हो जाती हैं। जिस तरह से तमाम राजनीतिक दलों से लेकर मीडिया मंचों पर किसानों की दुर्दशा का व्याख्यान होता है, उसमें समाधान की शायद ही कोई चर्चा होती है। इससे यही लगता है कि यह समस्या वर्तमान समय में सबसे अधिक बिकाऊ विषय बनकर रह गयी है। आंकड़ों के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 15,168 किसानों की मौत का कारण फसल संबंधित बैंकों का कर्ज न चुकता कर पाने के दबाव में आत्महत्या करना है। यही नहीं, हमारे देश के लाखों किसान बढ़ती महंगाई को लेकर भी परेशान हैं, क्योंकि इसका सीधा नुकसान किसानों की स्थिति पर पड़ता है।
देश की अर्थव्यवस्था के विकास में किसानों का अहम योगदान है। बावजूद किसानों की समस्याएं कम होने की बजाए दिन ब दिन बड़ी व जटिल हो रही हैं। कृषि और किसान कल्याण को लेकर जब हम ठोस रणनीति की बात करते हैं तो उसमें सबसे पहले 86 प्रतिशत लघु और सीमांत किसानों की बात आती है जो लगातार हाशिये पर जा रहे हैं। यदि भारतीय परिदृश्य में कृषि और किसानों का कल्याण सुनिश्चित करना है तो इन्हीं 86 प्रतिशत किसानों को ध्यान में रख कर रणनीति और कार्ययोजना तैयार करनी होगी तभी जमीन पर कुछ अनुकूल परिणाम मिल सकते हैं।